हिंदू पंचांग के अनुसार प्रदोष व्रत प्रत्येक मास की त्रयोदशी पर रखा जाता है. ऐसा माना जाता है कि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा और व्रत करने से व्यक्ति के पाप धूल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है. इस व्रत को पूरी श्रद्धा और नियम धर्म के साथ करने से इसका उचित फल प्राप्त होता हैं.इस बार यह प्रदोष व्रत 28 अप्रैल,शनिवार को आ रहा हैं.यह मान्यता हैं कि जो भक्त प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा के बाद एकाग्र होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती हैं और जीवन के सभी कष्ट अपने आप ही दूर होते जाते हैं.
पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ भिक्षा मांगकर अपना जीवनयापन करती थी.एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया.उसने उस बालक से पूछा कि वो कौन हैं ? तो उस बालक ने बताया कि - वह विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त हैं. एक भीषण युद्ध में शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया तत्पश्चात उसकी माता की भी मृत्यु हो गई और उसे राज्य से बाहर कर दिया. बालक की वाणी सुन ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण वह अपने स्वयं के पुत्र की भांति करने लगी.
एक दिन ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई. वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई और ऋषि ने सारी कहानी ब्राह्मणी को बताई और ऋषि शाण्डिल्य ने दोनों बालको को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी. ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया. सभी ने ऋषि द्वारा बताए गए पूर्ण विधि-विधान से ही व्रत सम्पन्न किया, लेकिन वह नहीं जानते थे कि यह व्रत उन्हें क्या फल देने वाला है.
एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं. ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त वहीं रह गए. वे वहां "अंशुमती" नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए थे और उनसे बात करने लगे.
गंधर्व कन्या और राजकुमार एक-दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया. दूसरे दिन जब वह पुन: गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता को मालूम हुआ कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है. भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया.राजकुमार का समय बदला और इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने बेहद संघर्ष किया, दोबारा से अपनी गंधर्व सेना तैयार की और युद्ध करके अपने विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया. कुछ समय के पश्चात उन्हें यह ज्ञात हुआ कि जो कुछ भी बीते समय में उन्हें हासिल हुआ है वह यूं ही नहीं हुआ. यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था. जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें जीवन की हर कठिनाई से लड़ने की शक्ति प्रदान की.
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