हर व्यक्ति चाहता है, की उसका जीवन हमेशा खुशहाल बना रहे, उसके जीवन में सभी प्रकार की सुख सुविधाएँ हों. इन्ही सब बातों को ध्यान में रखकर व्यक्ति कड़ी मेहनत करता है, लेकिन कई बार ऐसा होता है, कि व्यक्ति की आर्थिक स्थिति अचानक से बहुत दयनीय हो जाती है या कई व्यक्ति ऐसे होते है, जो अपना जीवन हमेशा आर्थिक तंगी में ही व्यातीत करते है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन सब का कारण व्यक्ति कि कुंडली में दरिद्रता दोष, होने के कारण होता है, जो किसी भी व्यक्ति को दरिद्रता के मार्ग पर ले जाता है. वैदिक शास्त्र का मानना है, कि वह व्यक्ति, जो भोग विलास में लिप्त रहते है, वह शंकालु प्रवृत्ति के होते है, कटु भाषी होते है, धूर्त होते है, और नारी पर कु-दृष्टी रखते है. अधिकतर यही व्यक्ति इस दोष से प्रभावित होते है. ज्योतिष शास्त्रों में दरिद्रता दोष की कुछ ऐसी ही परिस्थितियां बतायी गई है, जिनके कारण व्यक्ति दरिद्र होता है.
दरिद्रता योग – वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब व्यक्ति की कुंडली में ब्रहस्पति ग्रह अपने षष्टम भाव या द्वादशः भाव में विराजमान होता है, किन्तु वह स्वग्रही नही होता है, तो इससे दरिद्र योग का निर्माण होता है.
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शुभ ग्रह केंद्र में व पाप ग्रह धन भाव में विराजित होते है, तो ऐसे व्यक्ति का जीवन दरिद्रता में व्यातीत होता है.
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के चतुर्थ भाव में कोई पाप ग्रह विराजमान हो, तो ऐसा व्यक्ति भी दरिद्र होता है.
वह व्यक्ति जिसका जन्म शुक्ल पक्ष की रात्रि में हुआ हो, तथा चन्द्र कुंडली के षष्टम या अष्टम भाव में स्थित हो, जिसपर किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो, तो इस प्रकार का योग भी दरिद्र योग कहलाता है.
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