ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को वट सावित्री का व्रत सुहागनों के द्वारा अपने सुहाग की लम्बी उम्र और मंगल के लिए किया जाता है. इस वर्ष यह तिथि 15 मई को है. इस व्रत को करने के पीछे यह मान्यता है कि इसी दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी इसलिए इस दिन जो भी सुहागन स्त्री व्रत रहकर वट वृक्ष की पूजा करती है उसके पति की आयु लम्बी हो जाती है.
इस व्रत को करने के लिए आवश्यक पूजन सामग्री और पूजन विधि : मान्यता है कि वट सावित्री की पूजा के लिए विवाहित महिलाओं को बरगद के पेड़ के नीचे ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि बरगद के पेड़ में तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है. सुबह स्नान करके सोलह श्रृंगार करके एक थाली में प्रसाद जिसमे घी का दीया,पान का पत्ता,कुमकुम, रोली, मोली, 5 प्रकार के फल, गुड़, भीगे हुए चने, आटे से बनी हुई मिठाई, धुप, एक लोटे में जल और एक हाथ का पंखा लेकर बरगद पेड़ कि पूजा के लिए जाना चाहिए और पेड़ की जड़ में सर्वप्रथम जल चढ़ाकर उसके बाद प्रसाद चढाकर धुप, दीपक जलाना चाहिए.
पूजन समाप्त होने के पश्चात् सच्चे मन से अपने पति के लिए लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करना चाहिए. तत्पश्चात पंखे से वट वृक्ष को हवा करना चाहिए और सावित्री माँ से अपने सुहाग की दीर्घायु का आशीर्वाद लेना चाहिए.उसके बाद बरगद के पेड़ के चारो ओर कच्चे धागे को बांधकर 7 बार घूमना चाहिए और घर आकर जल से अपने पति के पैर धोएं और आशीर्वाद लें. उसके बाद अपना व्रत खोल सकती है.
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Vat Savitri vrat : वट सावित्री का व्रत करने से मिलता है यह अमूल्य वरदान