दान का आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व दोनों है. हिंदू पौराणिक ग्रंथों में कलयुग में सबसे बड़ा पुण्य दान बताया गया है. ज्योतिष में दान के महत्व को ग्रहों के आधार पर बताया गया है. यानि यदि आप किसी ग्रह दोष से पीड़ित हैं तो दान कर ऐसे दोषों को दूर कर सकते हैं.
1-जैसे काली उड़द का कारक राहु है, स्वर्ण का कारक बृहस्पति, गेहूं का कारक सूर्य आदि. यदि जन्म चक्र में किसी ग्रह विशेष की स्थिति उस जातक के लिए नकारात्मक है तो संबंधित पदार्थ का पर्याप्त दान उस ग्रह की नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है. यह पूरी तरह से वैज्ञानिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है.
2-जो व्यक्ति पत्नी, पुत्र एवं परिवार को दुःखी करते हुए दान देता है, वह दान पुण्य प्रदान नहीं करता है. धर्म ग्रंथों में उल्लेखित है कि दान देते समय मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए और दान लेने वाले का मुंह उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए. ऐसा करने से दान देने वाले की आयु बढ़ती है और दान लेने वाले की भी आयु कम नहीं होती है.
3-यदि आप जरूरतमंद लोगों के घर जाकर दान करते हैं तो ऐसा दान शास्त्रों में उत्तम माना गया है. तिल, कुश, जल और चावल, इन चीजों को हाथ में लेकर दान देना चाहिए. पितरों को तिल के साथ तथा देवताओं को चावल के साथ दान देना चाहिए.