इस संसार में शायद ही ऐसा कोई मनुष्य होगा जिसके जीवन में दुःख न हो, दुःख इस संसार की वह सच्चाई है जिससे हर मनुष्य वाकिफ रहता है, जो दुःख को सहन कर लेता है वही मनुष्य सुख का आनंद ले पाता है और जो इसे सहन नहीं कर पाता वह लोगो से नाता तोड़कर उनसे बहुत दूर चला जाता है, आपको एक बात बता दें की सुख और दुःख जीवन के दो पहलु है जिसमे एक पहलु खो जाये तो जीवन जीने का मतलब ही नहीं रह जाएगा इस कारण दुःख आने पर घबराना नहीं चाहिये, और यदि आपके पास सुख ही सुख है तो कोशीश कीजिये की उस सुख में आप दुसरो को भी शामिल करें, हो सके तो आप दुसरे के दुःख को कम करने की कोशिश करें.
सुख आने पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए और न ही दुसरो के प्रति अपना व्यवहार बदलना चाहिए अर्थात लोगो से प्रेम पूर्वक व्यवहार करना चाहिए, आपको एक बात बता दें की दुःख का सामना सभी को करना पड़ता है चाहे वह कोई साधारण मनुष्य हो या कोई साधू संत दुःख सभी को झेलना पड़ता है.
दुःख का सामना तो राजा दशरथ को भी करना पड़ा था जब कैकयी ने राजा दशरथ से भगवान श्री राम को वनवास देने का वचन माँगा था तब पुत्र वियोग के कारण राजा दशरथ का देहांतवास हो गया था, इसके बाद भगवान श्री राम को माता सीता के वियोग सहना पड़ा था तथा उन्हें भी दुःख का सामना करना पड़ा था इसके बाद उन्हें सुख की प्राप्ति हुई.
दोस्तों जिन्दगी में जब भी दुःख आये तो बार बार अपने दुःख का गुणगान किसी से नहीं करना चाहिए बल्कि ऐसे समय में भगवान की भक्ति में मन लगाना चाहिए, मंदिर जाकर वहां अपने दुखो के निवारण की प्रार्थना करना चाहिए, और हो सके तो मंदिर में अपना कुछ समय व्यतीत करना चाहिए.
तो इसलिए किसी भी काम की शुरुआत पर स्वास्तिक चिन्ह अंकित किया जाता है
सिक्ख धर्म 10 वें गुरु, गोविन्द सिंह मानवता के पक्षधर थे
पिछले जन्म के कर्म ही निर्धारित करते है मनुष्य का जन्म
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