जब माँ मेरे सीने से लिपटकर रोई थी...

जब माँ मेरे सीने से लिपटकर रोई थी...
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"दुनिया में कितना गम है 
मेरा गम कितना कम है 
लोगो का गम देखा तो 
मैं अपना गम भूल गया"

आनंद बक्शी की इन लाइन्स के अर्थ बहुत गहरे है. हो सकता है आप कविता के अंदर का मतलब समझते-समझते उसके अंदर उतर जाए. उतरते हुए आपको करोड़ों ऐसी ज़िंदगी बसर करती मिल जाएगी जो दो जून की रोटी की मोहताज़ है, शायद ऐसे ही GMB आकाश भी उतरे होंगे, और उतरते हुए राहों में बांग्लादेश आ गया. आकाश पेशे से फोटोग्राफर है. और उन्होंने कैद की रोतना अख्तर की ऐसी तस्वीर जो बोलती है, आपसे बातें करती है, गरीबी में पनप रही हौंसले की एक कहानी बताती है, समाज को कोसती है. कहानी छोटी है लेकिन उसके मायने ज़िंदगी की पीले पन्नो वाली अनुभव की एक किताब है. 

बांग्लादेश की रोतना अख्तर जो 6 साल की उम्र से अपनी माँ के साथ ईट तोड़ने की कम्पनी में काम रही है. रोतना बताती है की 6 साल पहले एक रोड़ एक्सीडेंट में मेरे पापा की मौत हो गई थी उसके बाद मैं, मेरा छोटा भाई और माँ सड़क पे आ गए, कई दिनों तक हमारे पास खाने को कुछ न था घर पे चावल खत्म हो गए थे यहाँ तक कि हम हमारे एक कमरे के घर का किराया तक नहीं दे पा रहे थे. उसके बाद मेरी माँ ईट तोड़ने की कम्पनी में काम करने लगी थी, ये बहुत मुश्किल वक़्त था. माँ शारीरिक और मानसिक तौर पर  बहुत कमजोर हो गई थी, लेकिन बावजूद उसके वो सुबह से शाम काम पर जाती थी. वो अभी भी यकीन नहीं कर पा रही थी की पापा चले गए, वो थककर रोज शाम को घर आती, दर्द से कराहते हुए शरीर से रात भर सो नहीं पाती थी, मैंने रोज माँ को भाई से लिपटकर रोते देखा है, माँ की आँखों में वो इंतजार अभी भी है, उसकी आँखें आज भी पापा को ढूंढते रहती है.

हमारा इस दुनिया में कोई नहीं है, मम्मी पापा ने लव मैरेज की थी, जिसके बाद दोनों के परिवार वालो ने उनको अपनाने से मना कर दिया. उसके बाद आगे की ज़िंदगी जीने के लिए माँ और पापा ढाका आ गए थे यहीं पापा रिक्शा चलाकर अपना घर चलाते थे. पापा के चले जाने पर मुझसे माँ का संघर्ष देखा नहीं गया, इसलिए 6 साल की उम्र से मैं भी माँ के साथ काम पे जाने लगी थी. मुझे आज भी याद है काम का वह पहला दिन जब, माँ मेरे सीने से लिपटकर रोई थी. वो कभी नहीं चाहती थी की मैं भी उसके साथ काम करूं. मेरे पापा हमेशा चाहते थे कि मैं और मेरा छोटा भाई स्कूल जाएँ लेकिन मज़बूरी कुछ समय से तेज ही चलती है.

पहले कुछ दिनों तक मैं 30 ईटे ही तोड़ पाती थी जिसके मुझे 30 टका मिलते थे, जो बहुत कम होते थे. लेकिन अब मैं एक दिन में 125 ईटे तोड़ लेती हूँ जिसका मुझे 125 टका मिल जाता है, जिससे हम आसानी से छोटे भाई को स्कूल को भेज सकते है. 

पिछले 6 महीने से मैं ओवर टाइम करती हूँ, 2 दिन पहले ही हमने भाई के लिए साइकिल खरीदी है ताकि वो शाम को थककर न आये और आसानी से अपने स्कूल और ट्यूशन जा सके, वो पढ़ने में बहुत अच्छा है, पिछले इम्तिहान में क्लास में सेकंड आया था. मेरे भाई ने मुझसे कहा कि वो बड़ा होकर नौकरी करने लगेगा तो मुझे कभी भी काम नहीं करने देगा.

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