अन्नदाता आत्महत्या करे या आन्दोलन ?
अन्नदाता आत्महत्या करे या आन्दोलन ?
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छतरपुर : देश के अधिकांश हिस्सों, विशेषकर मालवांचल में इस वर्ष हुई अल्पवर्षा से सूखे के हालात निर्मित हो गए हैं. जहाँ खरीफ की फसल से निराश किसान के आंसू अभी सूखे भी नहीं थे, की रबी की फसल के लिए अपर्याप्त पानी के चलते सिर्फ 25-30% भूमि पर बोवनी संभव हो सकी हैं. बाकि 75% रकबा ख़ाली पड़ा हैं. जिले की कुल 3.5 लाख हैक्टेयर ज़मीन में से सिर्फ 57560 हेक्टैयर पर ही बोवनी संभव हो सकी हैं. और इस ज़मीन में भी किसानो ने ज्यादातर चने की फसल लगाई हैं, ताकि कम पानी में ही फसल ली जा सके.

खरीफ की फसल का उत्पादन और कम दाम की मार झेल चुके किसानों की समस्या बिजली की कीमतों और कनेक्शन मिलने की दिक्क्तों ने पहले ही बड़ा रखी हैं. साथ ही मंहगी कीटनाशक दवाइयाँ और खाद, बीज दूसरी समस्या हैं. इस बीच सिर्फ 25% ज़मीन पर बोवनी किसानों के लिए आने वाले दिनों में राहत की खबर तो नहीं हैं. प्रदेश के किसान लगातार मौसम और सरकारी नीतियों के चलते क़र्ज़ में डूब रहें हैं, ऐसे में या तो किसान आंदोलन करेगा या आत्महत्या.

देश के अन्नदाता की कहानी नई नहीं हैं. सरकारें आती हैं चलीं जाती हैं, मगर किसान के मायूस चेहरे का दर्द समझना कोई नहीं चाहता. जबकि मिट्टी से अनाज पैदा करने का जादू सिर्फ किसान ही जानता हैं. न कोई नेता, न मंत्री, न व्यापारी. बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियो में दुनियां के सबसे अच्छे गैजेट्स तैयार किये जा सकते हैं, मगर भूख मिटाने वाला अनाज सिर्फ किसान पैदा कर सकता हैं.

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