कहा जाता है कि जिस प्रकार भगवान् अपने भक्त के बिना अधूरे होते है उसी प्रकार भक्त भी भगवान् के बिना अधूरा माना जाता है और भगवान् कई प्रकार से अपने भक्तों कि परीक्षा लेते रहते है ऐसा ही एक वाक्य भगवान् राम व भगवान् शिव के विषय में है आइये जानते है किस प्रकार भगवान् शिव ने प्रभु श्रीराम कि परीक्षा ली थी.
यह उस समय कि बात है जब भगवान् राम का राज्याभिषेक हो गया था और उनके मन में ब्राह्मणों को भोजन कराने का विचार आया जिसमे उन्होंने सभी ब्राहमणों को भरपेट भोजन कराने का निश्चय किया. तब भगवान् शिव प्रभु श्रीराम कि परीक्षा लेने के उद्देश्य से एक ब्राह्मण का रूप धारण कर उस भोज में सम्मलित हो गए.
सभी ब्राहमण भोजन करने लगे उनके साथ भगवान् शिव भी ब्राहमण के रूप में भोजन कर रहे थे. सभी ब्राहमण भोजन करके संतुष्ट हो गये किन्तु भगवान् शिव अभी भी भोजन ग्रहण कर रहे थे. अंत में प्रभु श्रीराम का समस्त अन्न्कोष समाप्त हो गया लेकिन भगवान् शिव अभी भी संतुष्ट नहीं हुए थे जिसके कारण प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी को और अन्न लाने के लिए भेजा.
तब तक प्रभु श्रीराम समझ चुके थे कि यह कोई साधारण ब्राहमण नहीं बल्कि ब्राहमण के रूप में कोई देव है इसलिय उन्होंने माता सीता से उस ब्राहमण को स्वयं भोजन कराने के लिए कहा. जैसे ही माता सीता ने उन्हें पहला निवाला खिलाया भगवान् शिव का पेट भर गयाअब उन्हें बहुत नींद आने लगी किन्तु अधिक भोजन ग्रहण करने के कारण वह अपनी जगह से उठ नहीं पा रहे थे तब हनुमान जी ने उन्हें उठाने का प्रयास किया पर वह भी भगवान् शिव को नहीं उठा पाए.
आखिर में लक्ष्मण ने प्रभु श्रीराम व भगवान् शिव का नाम लेकर उन्हें उनके स्थान से उठाकर बिस्तर पर लेटा दिया. सभी भगवान् शिव कि सेवा करने लगे व जब माता सीता ने उन्हें पानी पिलाया तब भगवान् शिव ने उनके ऊपर उस जल से कुल्ला कर दिया. जिससे माता सीता ने उन्हें प्रणाम कर कहा इस सौभाग्य के लिए में आपको धन्यवाद करती है कि मुझे आपने इस योग्य समझा.
इतना सुनकर भगवान् शिव अपने असली रूप में प्रगट हो गए. और कहा कि इतना सब हो जाने के बाद भी आपको कोई क्रोध नहीं आया आप वास्तव में मर्यादा परुषोत्तम है मांगिये आपको क्या वरदान चाहिए. तब प्रभु श्रीराम ने वारदान मांगने से माना कर दिया और कहा कि यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते है तो अनंतकाल तक अपनी सेवा, भक्ति करने का आशीर्वाद प्रदान कीजिये.
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