नई दिल्ली: इतिहासकार और लेखक एस इरफान हबीब ने धर्म को राष्ट्रवाद से जोड़ने पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने शुक्रवार को नई दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में आयोजित एक कार्यक्रम के उद्घाटन के दौरान कहा कि धर्म को राष्ट्रवाद से जोड़ना एक बुद्धिमानी भरा कदम नहीं है, क्योंकि ऐसा करने से कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जैसा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के उदाहरणों से देखा जा सकता है।
हबीब ने यह भी कहा कि धर्म का अपना अलग स्थान है और इसे राष्ट्रीयता से जोड़ने से राष्ट्र में विघटन का खतरा बढ़ सकता है। उन्होंने ऐतिहासिक उदाहरण देते हुए कहा कि यदि आप पिछले हजार सालों का इतिहास देखें, तो कई समुदायों ने एक या दो बार अपना धर्म बदला, लेकिन उन्होंने अपनी राष्ट्रीयता नहीं बदली। उन्होंने पाकिस्तान और बांग्लादेश का उदाहरण देते हुए बताया कि धर्म के आधार पर विभाजन के बावजूद दोनों देशों में सांस्कृतिक और भाषाई भिन्नताएं हैं, जबकि धर्म एक ही है। हबीब ने कहा, धर्म के आधार पर राष्ट्र निर्माण से समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, क्योंकि एक देश में कई धर्म हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि, आप बीते 50 वर्षों पर नजर डालें तो आप पाएंगे कि धर्म के नाम पर हमारे राष्ट्र का विभाजन हुआ। इस्लाम के नाम पर जो राष्ट्र बना, वह 25 साल भी एक नहीं रह पाया। इस सत्र में लेखक रतन शारदा ने भी भाग लिया और कहा कि इस्लाम, ईसाई और वैष्णव विभिन्न धर्मों के होते हुए भी सभी का मानवता से गहरा संबंध है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में विभिन्न संप्रदाय और समुदाय होते हुए भी, हम सभी का एक ही धर्म है।
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