नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि डेडिकेशन या इस्तेमाल के किसी भी साक्ष्य के अभाव में, एक जर्जर दीवार या मंच को नमाज़ या नमाज़ अदा करने के मकसद से मस्जिद का दर्जा नहीं दिया जा सकता। अदालत ने वक्फ बोर्ड राजस्थान बनाम जिंदल सॉ लिमिटेड मामले में सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की खंडपीठ ने राजस्थान राज्य वक्फ बोर्ड द्वारा राजस्थान हाई कोर्ट के सितंबर 2021 के फैसले को चुनौती देने वाली एक अपील को ठुकरा दिया, जिसके द्वारा उसने जिंदल सॉ लिमिटेड को खनन के लिए आवंटित भूखंड से एक संरचना को हटाने की इजाजत दी गई थी। जिस पर राजस्थान वक्फ बोर्ड ने दावा करते हुए कहा था कि यह एक धार्मिक स्थल है। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि यह साबित करने के लिए कोई प्रमाण नहीं था कि खनन साइट पर एक मस्जिद थी।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि, 'किसी भी समय इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि संरचना का इस्तेमाल मस्जिद के तौर पर किया जा रहा था। डेडिकेशन, उपयोग या अनुदान का कोई आरोप या साक्ष्य नहीं है, जिसके आधार पर इसे वक्फ अधिनियम 1995 के तहत वक्फ बोर्ड की संपत्ति कहा जाए। किसी भी सबूत के अभाव में, एक जर्जर दीवार या एक मंच को प्रार्थना / नमाज़ अदा करने के इरादे से मजहबी स्थान (मस्जिद) का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।'
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