भारत में 4 बार विधायक बन गया जर्मनी का नागरिक, अब हाईकोर्ट में खुला राज़

भारत में 4 बार विधायक बन गया जर्मनी का नागरिक, अब हाईकोर्ट में खुला राज़
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हैदराबाद: यह विश्वास करना मुश्किल है कि कोई व्यक्ति भारत में चार बार विधायक बन सकता है और वह देश का नागरिक ही नहीं हो। तेलंगाना हाई कोर्ट के हालिया फैसले ने एक चौंकाने वाला मामला उजागर किया है। अदालत ने भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के नेता चेन्नामनेनी रमेश को जर्मन नागरिक घोषित किया और यह भी कहा कि उन्होंने भारतीय नागरिकता और चुनाव लड़ने के लिए जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया।  

हाई कोर्ट ने माना कि चेन्नामनेनी रमेश, जर्मनी के नागरिक हैं और उन्होंने यह साबित करने के लिए कोई वैध दस्तावेज नहीं दिए कि उन्होंने जर्मनी की नागरिकता छोड़ दी है। अदालत ने इस मामले में रमेश पर 30 लाख रुपये का जुर्माना लगाया, जिसमें से 25 लाख रुपये कांग्रेस नेता आदी श्रीनिवास को दिए जाएंगे। यह मामला कांग्रेस नेता आदी श्रीनिवास की याचिका के बाद सामने आया। नवंबर 2023 के विधानसभा चुनाव में आदी श्रीनिवास ने रमेश को हराया था।  

केंद्र सरकार ने पहले ही 2020 में कोर्ट को बताया था कि रमेश के पास जर्मन पासपोर्ट था, जो 2023 तक वैध था। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उसी समय यह भी स्पष्ट कर दिया था कि रमेश ने नागरिकता के आवेदन में गलत जानकारी देकर सरकार को गुमराह किया है। इसके बावजूद रमेश ने अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए जर्मन पासपोर्ट सरेंडर करने और नागरिकता छोड़ने के प्रमाण नहीं दिए। इस वजह से अदालत ने 2013 में उनकी चुनावी जीत को रद्द कर दिया था।    

चेन्नामनेनी रमेश 2009 में तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के टिकट पर विधायक बने और बाद में 2010 से 2018 तक तीन बार बीआरएस के टिकट पर वेमुलावाड़ा सीट से विधायक चुने गए। उन्होंने 2014 और 2018 के चुनाव भी जीते। हालांकि, 2023 के चुनाव में वह हार गए। यह मामला भारतीय राजनीति की बड़ी खामी को उजागर करता है। क्या राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि की इतनी भी जांच-पड़ताल नहीं करते? एक जर्मन नागरिक ने 20 वर्षों तक भारत में न केवल विधायक पद संभाला बल्कि देश को भी गुमराह किया।  

यह सवाल उठता है कि अगर कोई पाकिस्तानी या बांग्लादेशी आतंकी इसी तरह भारत में आकर विधायक, मंत्री या अन्य संवैधानिक पदों पर कब्जा कर ले, तो यह देश की सुरक्षा के लिए कितना बड़ा खतरा हो सकता है?  यह घटना हमारे सिस्टम की गंभीर नाकामी को दर्शाती है। कानून के अनुसार, गैर-भारतीय नागरिक न तो चुनाव लड़ सकते हैं और न ही वोट डाल सकते हैं। इसके बावजूद, एक विदेशी नागरिक भारत में विधायक बनकर जनता का प्रतिनिधित्व करता रहा।  

सिस्टम को ऐसे मामलों को रोकने के लिए सख्त और पारदर्शी प्रक्रिया अपनानी चाहिए। राजनीतिक दलों को उम्मीदवारों के चयन में पूरी तरह से सतर्क रहना होगा और उनकी पृष्ठभूमि की गहन जांच करनी होगी। सवाल यह है कि 20 सालों तक इस सच्चाई को छुपाए रखने की जिम्मेदारी किसकी है? क्या राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग को इस मामले में जवाबदेह नहीं ठहराया जाना चाहिए?  

यह मामला न केवल भारतीय राजनीति के लिए बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी एक चेतावनी है। अगर ऐसे मामले भविष्य में भी होते रहे, तो यह हमारे देश के लोकतंत्र और सुरक्षा को गहरे संकट में डाल सकता है। सभी राजनीतिक दलों को इस तरह के खतरों से लड़ने के लिए एकजुट होकर काम करना होगा।  

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