मुगल इतिहास का अनोखा सच: अकबर की मां पढ़ती थीं रामायण!

मुगल इतिहास का अनोखा सच: अकबर की मां पढ़ती थीं रामायण!
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इतिहास के पन्नों में मुगल बादशाहों को अक्सर कट्टर मुस्लिम शासकों के रूप में चित्रित किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महान मुगल सम्राट अकबर की मां, हमीदा बानू बेगम, रामायण पढ़ती थीं? यह एक ऐसा तथ्य है जो इतिहास के इस कट्टरपंथी दृष्टिकोण को चुनौती देता है और दर्शाता है कि मुगलों का भारतीय संस्कृति और धर्मों के प्रति सम्मान था।

हमीदा बानू बेगम और रामायण: हमीदा बानू बेगम, जो बाद में मरियम मकानी के नाम से प्रसिद्ध हुईं, फारस के शासक शाह तहमास्प की भतीजी थीं। उन्होंने मुगल सम्राट हुमायूं से शादी की और 1542 में अकबर को जन्म दिया। हमीदा बानू एक विद्वान और कला प्रेमी महिला थीं। उन्होंने अपने बेटे अकबर को शिक्षा और कला में रुचि विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।bयह ज्ञात है कि हमीदा बानू रामायण पढ़ती थीं और भगवान राम के आदर्शों को अकबर को भी सुनाती थीं।bउन्होंने अकबर को विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के प्रति सहिष्णुता और सम्मान का महत्व भी सिखाया।

अकबर और धार्मिक सहिष्णुता: अकबर, अपनी मां के मार्गदर्शन से प्रेरित होकर, एक धर्मनिरपेक्ष शासक बने। उन्होंने सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता की नीति अपनाई और 'दीन-ए-इलाही' नामक एक नया धार्मिक विचारधारा विकसित की, जो विभिन्न धर्मों के सिद्धांतों को मिलाकर बनाया गया था। अकबर के शासनकाल में हिंदुओं को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया और हिंदू धर्म के प्रति सम्मान का माहौल बनाया गया।

हमीदा बानू की रामायण:

हमीदा बानू की रामायण की प्रति आज भी कतर की राजधानी दोहा के म्यूजियम ऑफ इस्लामिक आर्ट में मौजूद है। यह रामायण 450 पन्नों की है और इसमें 56 बड़ी-बड़ी पेंटिंग्स हैं जो भगवान राम और रावण के प्रसंगों को दर्शाती हैं। यह रामायण फारसी भाषा में लिखी गई है और इसका अनुवाद अकबर ने अपनी मां के लिए करवाया था। हमीदा बानू बेगम और उनकी रामायण का इतिहास का एक अनोखा पहलू है। यह दर्शाता है कि मुगल शासकों में भारतीय संस्कृति और धर्मों के प्रति सम्मान था। हमीदा बानू की रामायण अकबर के धर्मनिरपेक्ष शासन और सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता की नीति के लिए प्रेरणा का स्रोत थी।

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