सुभाष कपूर निर्देशित यह फ़िल्म कोई लंबे और उबाऊ कथानक पर फिल्मांकित नहीं है. फ़िल्म की कहानी बेहद छोटी और रोज़ लोगो के जीवन में आने वाली कथावस्तु है. लेकिन सुभाष कपूर ने अपने निर्देशन में फ़िल्म को सम्पूर्ण संजीदगी से रोचक और उद्देश्यपूर्ण बना दिया है. अक्षय कुमार तो अपनी अदा से न्याय तो करते ही हैं लेकिन फ़िल्म का हर किरदार अपनी छाप और पहचान बनाता हुआ नज़र आता है, फिर वकील के रोल में अन्नू कपूर हो या जज की कुर्सी पर विराजे सौरभ शुक्ला.
अन्नू कपूर का किरदार बेहद प्रभावी बन पड़ा है. वे दमदार वकील सिर्फ अपने तर्कों से ही नहीं अपनी अदाकारी, हाव भाव से भी नज़र आते हैं. सौरभ शुक्ला जज हैं लेकिन उनकी हास्य प्रधान अदा इस गंभीर रोल में भी हलके फुलके विनोद से चलती है और अंत में पूर्ण गभीरता से अपना अंतिम फैसला भी सुना देते हैं. कुल मिलकर जॉली LLB2 व्यवस्थाओं पर हावी षड्यंत्रों के मकड़जाल को उधेड़कर बेनकाब करने में कामयाब रही है.
कहीं कहीं लगने लगता है यह फिजूल और उबाऊ है वहीँ नर्देशक सुभाष कपूर संभल भी जाते हैं और हास विनोद से फ़िल्म को आगे ले जाने में कामयाब हो जाते हैं. हुमा कुरैशी को शराब की बोतल हाथ में पकड़ते देख आश्चर्य हुआ आखिर क्यों ?? उन्हें कुछ ज्यादा करने का मौका भी नहीं मिला सिवाय. बॉलीवुड के तमाम खान की फिल्मो से बोरियत हो रही हो तो एक बार जॉली LLB2 देखने जरूर जाएँ.
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