आज -दुष्यन्त कुमार

आज -दुष्यन्त कुमार
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आज -दुष्यन्त कुमार

अक्षरों के इस निविड़ वन में भटकतीं
ये हजारों लेखनी इतिहास का पथ खोजती हैं
...क्रान्ति !...कितना हँसो चाहे
किन्तु ये जन सभी पागल नहीं।

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