दिल्ली में चल रहा राजनीतिक तूफान थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. कल शाम को हुए मंडी हाउस के प्रदर्शन में लाखों पूर्ण राज्य की मांग के लिए सड़कों पर उतारकर आ गए है. ऐसे में कई लोगों का तबका दिल्ली के मुख्यमंत्री को गुनहगार साबित करने में लगे हुए है. आइए पूर्ण राज्य के दर्जे को लेकर एक नजर डालते है दिल्ली के इतिहास पर.
18 अगस्त 2003 को गृह मंत्री रहते हुए लाल कृष्ण आडवानी ने संसद में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा देने का प्रस्ताव रखा था, वो प्रस्ताव संसद की कमेटी को दिया गया, जिसके चेयरमैन कांग्रेस पार्टी के नेता प्रणव मुखर्जी थे, और उन्होंने भी माना था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा मिलना चाहिए. इसके बाद भी भाजपा खेमे से भाजपा नेताओ जैसे मदन लाल खुराना, साहेब सिंह वर्मा, विजय मल्होत्रा और डाक्टर हर्षवर्धन द्वारा समय-समय पर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा देने की वकालत की जाती रही है. विजय गोयल भी जब दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष थे तो उन्होंने भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की वकालत की थी.
भाजपा नेताओं की टोली 15 साल से दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग करते हुए कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थी. दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने विधान सभा में दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जे का प्रस्ताव रखा था. 2015 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा देने की बात कही थी. केजरीवाल दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की बात करके कौन सा गुनाह कर रहा है?