जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन के तहत निरोध नाम से कॉन्डोम कई दशकों से बाटे जा रहे है और स्वास्थ विभाग से जुडी महिला कार्यकर्ताओं को आशा कार्यकर्त्ता कहा जाता है. अब इन महिलाओं को 'आशा निरोध' नाम के कंडोम बांटने पड़ रहे है. मामला अब इन दोनों नामों के कारण जरा असहज हो गया है. यहाँ तक के ग्रामीण इलाको में मजाक और परिहास का कारण बन चुके इस मामले को लेकर आशा कार्यकर्ताओं का संगठन अब कंडोम के नाम के खिलाफ हाईकोर्ट जाने तक की बात कर रहा है.
एक आशा कार्यकर्ता ने कहा, 'ग्रामीण इलाकों में हमें प्यार से आशा कहा जाता है, लेकिन आशा नाम के गर्भनिरोधक की वजह से कई बार असहज होना पड़ता है. कुछ लोग इसको लेकर मजाक उड़ाते हैं.' कुछ आशा कार्यकर्ताओं ने इन कंडोम को बांटने से इनकार भी कर दिया है. लगभग 59 हजार आशा कार्यकर्ताओं को इन कंडोम को गांव गांव में बाँटना है. आशा-ऊषा सहयोगिनी एकता यूनियन के प्रेसीडेंट एटी पद्मनाभन ने बताया कि उनकी ओर से राज्य एनआरएचएम के निदेशक को इन कंडोम का नाम बदलने को कहा गया है, क्योंकि इससे स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को दिक्कतें हो रही हैं.
उन्होंने कहा, 'अगर राज्य सरकार इसका नाम बदलने में नाकाम रहती है, तो हमारे पास कोर्ट जाने के अलावा और कोई चारा नहीं होगा.' इंदौर की रहने वाली अमूल्य निधि नाम की एक सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता का दावा है कि कुछ असामाजिक तत्व आशा निरोध के जरिए महिला कार्यकर्ताओं पर अश्लील टिप्पणियां करते हैं. इनका नाम तुरंत बदला जाना चाहिए.
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