नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी और एस्थर डफ्लो अपनी इस उपलब्धि के मौके पर कहा, 'हमें रोजाना साफ पानी इकट्ठा करने या ईंधन जुटाने जैसी समस्याओं से जूझना नहीं पड़ता। जबकि गरीबों को रोज का ज्यादातर वक्त इन्हीं कामों को पूरा करने में बीत जाता है। उन्हें गुणवत्तापूर्ण समय का बिताने का मौका मिले तो बदलाव आएगा।' अभिजीत बनर्जी की पृष्ठभूमि के बारे में बात करें तो उन्होंने हार्वर्ड से पीएचडी पूरी करने के एक दशक बाद 1999 में मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) से जुड़े। यहां उनकी देखरेख में एस्थर डफ्लो ने पीएचडी की पढ़ाई पूरी की और कई साल साथ बिताने के बाद दोनों जीवनसाथी बन गए।
पहली पत्नी अरुंधति भी अर्थशास्त्री हैं। डॉक्टर अरुंधति तुली बनर्जी भी मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में लेक्चरर थीं। दोनों ने कोलकाता में एक साथ पढ़ाई भी की थी। हालांकि बाद में उनका तलाक हो गया। दोनों का एक बच्चा भी है। दोनों ने मिलकर 2006 में एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म द नेम ऑफ द डिसीज भी बनाई, जिसमें भारत की स्वास्थ्य समस्याओं का उल्लेख था। दोनों ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी में भी कुछ वक्त साथ काम किया।
अभिजीत की दूसरी शादी भी की दोनों ने एमआईटी में ही लंबे वक्त तक साथ काम किया। अभिजीत और डफ्लो करीब 18 माह लिव इन रिलेशिप में रहे और 2012 में उनके पहले बच्चे ने जन्म लिया। दोनों ने कानूनी तौर पर वर्ष 2015 में शादी कर ली। गरीबी के खिलाफ अपनी जंग में भट्टाचार्य ने वर्ष 2003 में अब्दुल लतीफ जमील पॉवर्टी एक्शन लैब बनाई। डफ्लो भी एमआईटी में गरीबी उन्मूलन और विकासात्मक अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हैं। अभिजीत ने अपनी किताब पुअर इकोनॉमिक्स : रिथिकिंग पॉवर्टी एंड द वेस टू इंड इट में लिखा कि गरीबी हटाने की योजनाएं सफल नहीं हो पाती हैं क्योंकि इनमें गरीबों के आर्थिक प्रोत्साहन को केंद्र में नहीं रखा जाता।
अभिजीत का पूरा परिवार अर्थशास्त्र से जुड़ा हुआ है। अभिजीत की मां और पिता भी अर्थशास्त्री रहे हैं। उनकी मां निर्मला बनर्जी कोलकाता के सेंटर फॉर स्टजीज इन सोशल साइंसेज में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर रही हैं। जबकि पिता दीपक बनर्जी कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष और प्रोफेसर रहे हैं।
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