धार्मिक मान्यता के अनुसार मानव जीवन में रक्षा सूत्र का विषेश महत्व होता है और यह रक्षा सूत्र का इस्तेमाल कोई आज से नहीं बल्कि आदिकाल से चला आ रहा है। कुछ लोग रक्षा सूत्र को मौली के नाम से भी जानते हैं, यह तीन रंगो की होती है और इसके रंग ही इसके महत्व का कारण होते है। जब भी कोई शुभ कार्य का आयोजन किया जाता है, तो मंत्र के माध्यम से मौली को धारण किया जाता है, इसे हाथ में बांधा जाता है। लेकिन मौली को बांधते समय बहुत सी बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है, तब ही यह मायने रखती है। आज हम आपसे कुछ इसी सिलसिले पर चर्चा करने वाले हैं। यहां पर हम जानेंगे कि आखिर मौली का मानव जीवन में क्या महत्व होता है और इसे किस प्रकार से धारण किया जाता है?
ऐसा माना जाता है कि असुरों के राजा दानवीर की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था। इसे रक्षा बंधन का प्रतीक भी माना जाता है। देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए ये बंधन बांधा था। मौली का मतलब सबसे ऊपर यानि सिरे से है। मौली को कलाई मे बांधा जाता है इसलिए इसे कलावा भी कहते हैं, जबकि इसका वैदिक नाम मणिबंध है।
मौली कच्चे धागे से बनाई जाती है, जो मूलतः 3 रंगो की होती है लाल, पीला और हरा लेकिन कभी-कभी मौली 5 रंगाें की भी होती है। 3 से मतलब है त्रिदेव के नाम की और 5 पंचदेव के नाम की।
मौली पहनने की विधी
जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हो, उसकी मुट्ठी बंद हाेनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए।
मौली कहीं भी बांधे लेकिन इस बात का ध्यान रहें कि इस रक्षा सूत्र को सिर्फ तीन बार बांधे।
पुरूषों और जिन लड़कियों की शादी नहीं हुई है, उन्हें कलावा दायें हाथो मे बांधते हैं।
विवाहित स्त्रियों के बाएं हाथ में कलावा बांधते हैं।
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