अडानी-मोदी, भाजपा-RSS और संविधान..! प्रियंका के पहले संसदीय भाषण में दिखी भाई राहुल की झलक

अडानी-मोदी, भाजपा-RSS और संविधान..! प्रियंका के पहले संसदीय भाषण में दिखी भाई राहुल की झलक
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नई दिल्ली: प्रियंका गांधी वाड्रा ने वायनाड से सांसद बनने के बाद अपने पहले संसदीय भाषण में सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कई मुद्दों को उठाया। उनके इस भाषण में राहुल गांधी की शैली की झलक स्पष्ट रूप से नजर आई। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार और बीजेपी-आरएसएस पर सीधे आरोप लगाए। प्रियंका ने अपने भाषण की शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना से की, यह कहते हुए कि पहले राजा भेष बदलकर जनता की आलोचना सुनने जाते थे, लेकिन आज के नेता जनता के बीच जाने से डरते हैं। 

प्रियंका ने अपने संबोधन में देश में डर के माहौल का जिक्र करते हुए इसे अंग्रेजों के शासन से जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि आज केंद्र सरकार चर्चा से डर रही है और जनता में भय फैलाने का प्रयास कर रही है। संविधान का जिक्र करते हुए प्रियंका ने कहा कि यह आरएसएस का विधान नहीं है, बल्कि यह देश की एकता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सुरक्षा कवच है। उन्होंने आरोप लगाया कि मौजूदा सरकार ने पिछले 10 सालों में इस कवच को तोड़ने की कोशिश की है। 

उन्होंने मणिपुर और संभल में हुई हिंसा का मुद्दा उठाते हुए प्रधानमंत्री पर सवाल दागा कि इन घटनाओं पर उनकी चुप्पी क्यों है। उन्होंने बीजेपी पर विभाजनकारी नीतियां अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि महंगाई और बेरोजगारी जैसे गंभीर मुद्दों पर संसद में चर्चा नहीं होती, बल्कि सरकार अतीत की बातें कर जनता को भ्रमित करती है। प्रियंका ने कहा कि किसानों और आदिवासियों की समस्याएं अनदेखी हो रही हैं, और कृषि कानून उद्योगपतियों के फायदे के लिए बनाए गए। 

अडानी समूह को लेकर प्रियंका ने तीखे आरोप लगाए, यह दावा करते हुए कि देश के सारे बंदरगाह, एयरपोर्ट, सड़कें, रेलवे और खदानें एक ही व्यक्ति को सौंप दी गई हैं। उन्होंने कहा कि सरकार गरीबों के बजाय सिर्फ बड़े उद्योगपतियों के हित में काम कर रही है। उनके अनुसार, यह सरकार सिर्फ अडानी के मुनाफे पर चल रही है। 

प्रियंका ने महिला सशक्तिकरण के मुद्दे पर सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि महिला आरक्षण विधेयक को लागू करने में देरी हो रही है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि क्या महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए 10 साल तक इंतजार करना पड़ेगा? 

हालांकि, प्रियंका गांधी के इस भाषण में उनकी अपनी पार्टी और गठबंधन के साथियों की सोच से थोड़ा अलग रुख देखने को मिला। कांग्रेस के साथी दल महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने की वकालत कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस और राहुल गांधी का फोकस अडानी-हिंडनबर्ग मामले पर ही टिका है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अडानी पर लगाए गए किसी भी आरोप को खारिज करने के बाद भी कांग्रेस का यह रवैया सवाल खड़े करता है। 

विपक्षी गठबंधन के साथी जहां ठोस नीतिगत चर्चाओं की ओर बढ़ने की बात कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस का संसद में बार-बार अडानी का मुद्दा उठाना सदन का कीमती समय बर्बाद करने जैसा प्रतीत होता है। प्रियंका गांधी का भाषण उनके भाई राहुल गांधी के रुख को ही आगे बढ़ाता नजर आया। अब सवाल यह है कि क्या कांग्रेस इस रवैये से खुद को मजबूती दे पाएगी या फिर यह उसे विपक्षी एकजुटता में अलग-थलग कर देगा।

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