सनातन धर्म में कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी, नरक चौदस या रूप चतुर्दशी के रूप में जाना जाता है। यह पर्व विशेष रूप से सौंदर्य और सौभाग्य को बढ़ाने का पर्व माना जाता है तथा इसे हर साल दीपों के पंचमहापर्व में धनतेरस के दूसरे दिन मनाया जाता है। इस साल, तिथियों के घटाव-बढ़ाव के चलते यह पर्व 24 अक्टूबर 2022 को मनाया जाएगा।
रूप चतुर्दशी की तिथि और समय
इस साल चतुर्दशी तिथि 23 अक्टूबर 2022 को सायंकाल 06:03 बजे से प्रारंभ होकर 24 अक्टूबर 2022 को सायंकाल 05:27 बजे तक रहेगी। इसलिए, उदय तिथि को आधार मानते हुए रूप चौदस का पावन पर्व 24 अक्टूबर 2022, सोमवार को मनाया जाएगा।
अभ्यंग स्नान का महत्व
रूप चतुर्दशी पर अभ्यंग स्नान का विशेष महत्व है। यह स्नान न केवल शारीरिक सौंदर्य को बढ़ाता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का भी प्रतीक है।
अभ्यंग स्नान मुहूर्त
अभ्यंग स्नान के लिए शुभ मुहूर्त प्रात:काल 05:06 से 06:27 बजे तक है। इस अवधि में स्नान करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। स्नान की अवधि लगभग 1 घंटा 22 मिनट है।
सुंदरता के लिए स्नान विधि
अपने सौंदर्य को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित विधियों का पालन करें:
ब्रह्म मुहूर्त में उठें: सुबह जल्दी उठना इस दिन का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
उबटन लगाएं: हल्दी, चंदन, बेसन, शहद और दूध से बने उबटन को अपने शरीर पर लगाएं। ये तत्व त्वचा को चमकदार और स्वस्थ बनाते हैं।
तिल के तेल से मालिश: यदि उपरोक्त सामग्री उपलब्ध न हो, तो कम से कम तिल के तेल से अपने शरीर की अच्छी तरह मालिश करें।
पवित्र स्नान: स्नान के पानी में किसी पवित्र नदी का जल डालें या उसे अपने घर में लाकर स्नान करें। यह मान्यता है कि इससे व्यक्ति का सौंदर्य वर्षों तक बना रहता है।
नरक चतुर्दशी पर दीपदान का महत्व
रूप चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से यम देवता की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है।
दीपदान विधि
समय: 23 अक्टूबर 2022, रविवार को सायंकाल 06:00 से 08:15 बजे के बीच दीपदान करना चाहिए।
दीये की तैयारी: आटे से चौमुखा दीया बनाएं और उसमें सरसों का तेल और काला तिल डालें। यह दीया दक्षिण दिशा में जलाना चाहिए।
पूजा: इस दिन विशेष रूप से मां काली की पूजा की जाती है, जिन्हें शक्ति का पावन स्वरूप माना जाता है। उनके सामने दीप जलाना और उनकी आराधना करना अत्यंत शुभ होता है।
पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार, नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। इस वध से देवताओं और कई ऋषि-मुनियों को नरकासुर के चंगुल से मुक्ति मिली। यह पर्व इस महान घटना की स्मृति में मनाया जाता है, और इस दिन यम देवता को प्रसन्न करने के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।
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