नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि वह तीन वर्ष से कम आयु के बच्चे को गोद लेने वाली माताओं के लिए मातृत्व अवकाश देने की नीति को स्पष्ट करे। जस्टिस जेबी पारदीवाला और पंकज मिठल की बेंच ने केंद्र सरकार से इस बारे में चार सप्ताह में जवाब मांगा है। यह मामला एक जनहित याचिका के दौरान उठा, जिसमें 2017 के मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम की धारा 5(4) को चुनौती दी गई थी। यह धारा केवल उन महिलाओं को 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश देने की अनुमति देती है, जिन्होंने तीन महीने से छोटे बच्चे को गोद लिया हो।
सुनवाई के दौरान, जस्टिस पारदीवाला ने केंद्र से पूछा कि आखिर यह शर्त क्यों है कि बच्चा तीन महीने से कम उम्र का होना चाहिए। मातृत्व अवकाश का असल उद्देश्य क्या है, इसे समझने की जरूरत है। वर्तमान मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के तहत, सिर्फ तीन महीने से कम उम्र के बच्चों को गोद लेने वाली माताओं को ही 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश दिया जाता है। इसका मतलब यह है कि तीन महीने से बड़े बच्चे को गोद लेने वाली माताओं को यह लाभ नहीं मिलता है।
हंसा आनंदिनी नामक महिला, जिन्होंने 2017 में दो बच्चों को गोद लिया था, ने सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे को उठाया। उनकी याचिका में धारा 5(4) की वैधता पर सवाल उठाया गया है। याचिका में कहा गया है कि तीन महीने से कम उम्र के बच्चों को गोद लेने वाली माताओं को 12 सप्ताह का अवकाश मिलता है, लेकिन तीन महीने से बड़े बच्चों के मामले में यह लाभ नहीं दिया जाता। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह प्रावधान सिर्फ एक दिखावा है और मातृत्व लाभ का असली उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह प्रावधान अंतरराष्ट्रीय मानकों का उल्लंघन करता है और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ग) का भी हनन करता है, जो व्यवसाय और कार्य में स्वतंत्रता का अधिकार देता है।
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