सनातन धर्म में प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा का पर्व मनाया जाता है। षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। छठ पूजा का आरम्भ नहाए खाय से होता है तथा अगले दिन खरना मनाया जाता है। छठ पूजा का त्योहार बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित देश कई भागों में धूमधाम के साथ मनाते हैं। मान्यता है कि छठ पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली का आगमन होता है। वहीं, इस वर्ष नहाए खाए के साथ यानि 17 नवंबर से लोकआस्था का महापर्व आरम्भ हो रहा है जो कि 20 नवंबर तक चलेगा। आइए आपको बताते है इसकी तिथि, शुभ मुहूर्त और पौराणिक कथा…
तिथि
नहाय खाए (षष्ठी व्रत) : 17 नवंबर, 2023
खरना : 18 नवंबर, 2023
डूबते सूर्य को अर्घ्य : 19 नवंबर, 2023
उगते सूर्य को अर्घ्य : 20 नवंबर, 2023
शुभ मुहूर्त
डूबते सूर्य को अर्घ्य : शाम 5 बजकर 26 मिनट
उगते सूर्य को अर्घ्य : सुबह 06 बजकर 47 मिनट
पौराणिक कथा
बता दें कि षष्ठी देवी की पूजा विशेष रूप से संतान प्राप्ति के लिए की जाती है तथा उनकी कृपा से बच्चों की सुरक्षा की जाती है। इसके पीछे की पौराणिक कथा के मुताबिक, षष्ठी देवी को ब्रह्मा देव की मानस पुत्री माना जाता है तथा वह निःसंतानता के लिए पूजा की जाती है। मान्यताओं के मुताबिक, राजा प्रियाव्रत की संतान प्राप्ति में आ रही समस्या के समाधान के लिए महर्षि कश्यप ने षष्ठी देवी की कृपा का सुझाव दिया। षष्ठी देवी की पूजा करने से राजा को एक पुत्र की प्राप्ति हुई, लेकिन वह पुत्र मर गया। इस पर राजा क्रोधित होकर आत्महत्या के लिए तैयार हुए। इस वक़्त षष्ठी देवी ने प्रकट होकर राजा को बताया कि जो उनकी पूजा करेगा, उसकी संतान की रक्षा करेगी। तत्पश्चात, उन्होंने राजा के मृत बच्चे पर हाथ फेरकर उसे जीवित कर दिया। तब से छठ पूजा का आरम्भ हो गया।
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