आखिर इंदिरा गांधी के 'इमरजेंसी' लगाने के पीछे कारण क्या था ? खुशवंत सिंह की किताब में है हर सवाल का जवाब

आखिर इंदिरा गांधी के 'इमरजेंसी' लगाने के पीछे कारण क्या था ? खुशवंत सिंह की किताब में है हर सवाल का जवाब
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नई दिल्ली: पूर्व पीएम इंदिरा गांधी को देश में आयरन लेडी कहा जाता है, भारत के विकास में उनका भी अहम योगदान है। लेकिन, प्रसिद्धि के साथ इंदिरा गांधी का नाम कुछ बड़े विवादों से भी जुड़ा रहा। फिर चाहे वो संसद के बाहर गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे साधू-संतों को गोलियों से छलनी करवा देना हो (1966), चाहे 1971 की जंग में पाकिस्तान के 90 हज़ार सैनिक रिहा करने के बावजूद अपने 54 सैनिक वापस न लेना हो, चाहे 1973 में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की स्थापना करने की मंजूरी देना हो, या 1976 में चुपके से संविधान के अंदर धर्मनिरपेक्ष यानि सेक्युलर शब्द जोड़ना हो, या फिर ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से लेकर गुरुदेव रबीन्द्रनाथ के शांति निकेतन तक उनके निजी विवादों की बात हो। लेकिन, इंदिरा गांधी की सर्वाधिक आलोचना आपातकाल यानि इमरजेंसी के लिए की जाती है।  

तारीख 25 जून, साल 1975 आधी रात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी का ऐलान कर दिया था। इस इमरजेंसी में शासन द्वारा किए गए कई अत्याचारों के किस्से आज भी नेताओं के भाषणों में गाहे-बगाहे सामने आ ही जाते हैं। लेकिन, यह इमरजेंसी क्यों लगाई गई थी और इसे लगाने के पीछे मुख्य किरदार कौन था, ये सवाल आज भी कई लोगों के लिए पहेली ही हैं। दरअसल, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल करना, निर्धारित सीमा से अधिक पैसे खर्च करना, वोटरों को घूस देना और वोटर्स को प्रभावित करने के लिए गलत तौर तरीके अपनाने जैसे 14 आरोप सिद्ध होने के बाद छह वर्ष के लिए प्रधानमंत्री पद से बेदखल कर दिया था। दरअसल, समाजवादी नेता राजनारायण ने 1971 में रायबरेली लोकसभा सीट से इंदिरा गांधी के हाथों पराजित होने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका लगाई था। जिसपर सुनवाई के दौरान इंदिरा गांधी पर आरोप सिद्ध हो चुके थे और उनकी प्रधानमंत्री की कुर्सी जाने वाली थी। 

यहाँ तक कि, खुद इंदिरा गांधी पीएम पद से इस्तीफा देने वाली थीं। ख़बरें यहाँ तक थीं कि इंदिरा ने इस्तीफा लिख लिया है, मगर अदालत द्वारा  उनके चुनाव को अवैध करार देने के बाद भी देर रात तक इंदिरा ने त्यागपत्र नहीं सौंपा। सियासी जानकार बताते हैं कि, छोटे बेटे संजय गांधी अपनी मां के इस्तीफे के पक्ष में नहीं थे और उन्होंने इस पर नाराजगी जाहिर थी। इसी उधेड़बुन में रात गहरा गई और सब सो गए। फिर अगली सुबह यानी 26 जून को जब लोगों की आंख खुली और उन्होंने अखबार पढ़े तथा रेडियो सुना, तो पता चला कि इंदिरा गांधी ने देश में आंतरिक आपातकाल की घोषणा कर दी है। प्रधानमंत्री की कुर्सी बचाने और पॉवर अपने हाथ में रखने का इंदिरा गाँधी के पास यही एक विकल्प बचा था।    

Truth, Love and a Little Malice पुस्तक लिखने वाले जाने माने संपादक खुशवंत सिंह ने देश पर आपातकाल थोपे जाने का पूरा ब्योरा सिलसिलेवार लिखा है। बता दें कि, खुशवंत की गांधी परिवार में अच्छी-खासी पैठ थी। उन्होंने किताब में लिखा कि इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा न देने के लिए पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय ने मनाया था। खुशवंत लिखते हैं कि, राय ने ही इंदिरा को कहा कि अब आंतरिक आपातकाल ही एकमात्र उपाय है और फिर देर रात इमरजेंसी के आदेश पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर ले लिए गए। इस पूरी योजना को इतना गोपनीय रखा गया कि आदेश जारी होने के बाद अगले दिन मंत्रिमंडल की बैठक में इंदिरा ने मंत्रियों से इस बारे में पिछली तारीख पर हस्ताक्षर लिए थे।

इमरजेंसी  लागू होते ही इंदिरा गांधी ने पुलिस की मदद से विपक्षी नेताओं को जेल में ठूंसना शुरू कर दिया। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडिस सहित कई दिग्गज नेताओं को 25 जून की रात में ही अरेस्ट कर लिया गया था। यही नहीं, लालू यादव, नितीश कुमार को भी जेपी आंदोलन में सहयोगी होने के कारण जेल काटनी पड़ी थी। आपातकाल के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर प्रतिबंध लगा दिया गया। दरअसल, RSS को विपक्षी नेताओं का करीबी माना गया था है और हुकूमत को डर था कि संघ सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर सकती है। जिसके बाद पुलिस ने RSS के हजारों कार्यकर्ताओं को जेल में ठूंस दिया।इन सभी को मीसा कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था, जिन्हे मीसाबंदी कहा गया। इसी का विरोध करते हुए लालू यादव ने 22 मई 1976 को जन्मी अपनी बेटी का नाम मीसा रखा था। उस समय टीवी न्यूज चैनल नहीं थे, ऐसे में अखबारों पर सेंसरशिप लागू कर दी गई। हर अख़बार और हर खबर सरकारी तंत्र की हरी झंडी के बाद ही छपती थी। खुशवंत सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि केवल रामनाथ गोयनका के समाचार पत्र इंडियन एक्सप्रेस ने बगैर डरे इस सेंसरशिप का मुकाबला किया। जिसका नतीजा यह निकला कि, इंडियन एक्सप्रेस के दफ्तर की बिजली ही काट दी गई। उस न्यूजप्रिंट का कोटा भी घटा दिया गया। इस दौरान इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में जबरन नसबंदी अभियान भी चला।  

बता दें कि भारत में इमरजेंसी 25 जून 1975 को लागू की गई थी, जो 21 मार्च 1977 यानी 21 महीने तक लागू रही। इस बीच देशभर के तमाम चुनाव स्थगित हो गए। लोगों के अधिकतर अधिकारों को छीन लिया गया।  लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इसे 'भारतीय इतिहास की सबसे अधिक काली अवधि' कहा था। इस बीच सरकार द्वारा देश में इतना अत्याचार किया गया, कि जनता कराह उठी, यह बात इंदिरा गांधी ने भी महसूस कर ली थी। अपने पक्ष में विरोध की लहर उग्र होती देख इंदिरा गाँधी ने मार्च 1977 में ही लोकसभा को भंग कर नए सिरे से चुनाव कराने की अनुशंसा कर दी। बस यहीं जनता ने अपना बदला पूरा कर लिया, इंदिरा खुद गाँधी परिवार की अभेद सीट रायबरेली से चुनाव हार गई और जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में आसीन हुई। भारतीय राजनीति का यह बेहद महत्वपूर्ण दौर था, क्योंकि 30 वर्षों के बाद देश में कोई गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी और मोरारजी देसाई पीएम बने थे।

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