फाल्गुन पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया जाता है। इस साल 7 मार्च को होलिका दहन होगा तथा 8 मार्च को रंगों की होली खेली जाएगी। जब भी रंगों के त्योहार होली के धार्मिक महत्व की बात आती है तो सबसे पहले मन में भक्त प्रह्लाद तथा उनकी बुआ होलिका का जिक्र किया जाता है। किन्तु क्या आप जानते हैं कि इस त्योहार से जुड़ी और भी कई पौराणिक कथाएं हैं। आज हम आपको देवलोक पर खेली गई पहली होली के बारे में बताते हैं।
संसार की पहली होली:-
होली के पर्व की पौराणिकता महादेव एवं प्रभु श्री विष्णु दोनों से जुड़ी है। हरिहर पुराण की कथा बोलती है कि संसार की पहली होली देवाधिदेव महादेव ने खेली थी जिसमें प्रेम के देवता कामदेव एवं उनकी पत्नी रति थीं। यह कहानी कहती है कि जब भगवान शंकर कैलाश पर अपनी समाधि में लीन थे तब तारकासुर के वध के लिए कामदेव एवं रति ने शिव को ध्यान से जगाने के लिए नृत्य किया था।
रति एवं कामदेव के नृत्य से महादेव की समाधि भंग हुई तो भगवान शंकर ने अपनी क्रोध की अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया। रति ने प्रायश्चित में विलाप किया तो अति दयालु भगवान महादेव ने कामदेव को पुन: जीवित कर दिया। इससे खुश होकर रति और कामदेव ने ब्रजमंडल में ब्रह्म भोज का आयोजन किया जिसमें सभी देवी देवताओं ने भागेदारी की। रति ने चंदन की टीका लगाकर खुशी मनाई थी। कहते हैं कि ये फाल्गुन पूर्णिका का दिन था। हरिहर पुराण के मुताबिक, ब्रह्म भोज में आनंद के मारे महादेव ने डमरू तो प्रभु श्री विष्णु ने बांसुरी बजाई थी। माता पार्वती ने वीणा पर स्वर लहरियां छेड़ीं तो माता सरस्वती ने बसंत के रागों में गीत गाए। कहते हैं कि तभी से धरती पर प्रत्येक वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा में गीत, संगीत एवं रंगों के साथ होली का आनंदोत्सव मनाया जाने लगा।
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