आखिर क्यों वट सावित्री व्रत के दिन बरगद के पेड़ में 7 बार बांधा जाता है कच्चा सूत?

आखिर क्यों वट सावित्री व्रत के दिन बरगद के पेड़ में 7 बार बांधा जाता है कच्चा सूत?
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इस बार वट सावित्री व्रत 6 जून, बृहस्पतिवार को रखा जाएगा. हिंदू परंपरा में महिलाऐं अपने पति की दीर्घायु एवं सुखद वैवाहिक जीवन के लिए तमाम व्रत का पालन करती हैं. वट सावित्री व्रत भी सौभाग्य प्राप्ति का एक बड़ा व्रत है. ये व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है. हिंदू पंचांग के मुताबिक, इस बार अमावस्या तिथि की शुरुआत 5 जून को रात 7 बजकर 54 मिनट पर होगी तथा समापन 6 जून को शाम 6 बजकर 07 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, इस बार वट सावित्री का व्रत 6 जून को ही रखा जाएगा. इस व्रत में वट वृक्ष की परिक्रमा की जाती है तथा उसमें 7 बार कच्चा सूत बांधा जाता है। तो आइए आपको बताते हैं कि इसका क्या धार्मिक महत्व है।

वट सावित्री के दिन बरगद पेड़ में कच्चा सूत क्यों बांधा जाता है? 
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, वट सावित्री व्रत के दिन बरगद पेड़ की विधिपूर्वत पूजा करने से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। सुहागिन महिलाएं वट सावित्री के दिन बरगद पेड़ की पूजा के साथ उसकी सात बार परिक्रमा करती हैं। इसके अतिरिक्त व्रती महिलाएं बरगद के पेड़ में सात बार कच्चा सूत भी लपेटती हैं। कहते हैं कि वट वृक्ष में सात बार कच्चा सूत लपेटने से पति-पत्नी का संबंध सात जन्मों तक बना रहता है। वट सावित्री के दिन बरगद पेड़ में कच्चा सूत क्यों बांधा जाता है? मान्यताओं के अनुसार, बरगद के वृक्ष पर कलावा बांधने से अकाल मृत्यु जैसे योग टल जाते हैं।

वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा क्यों की जाती है?
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, यमराज ने माता सावित्री के पति सत्यवान के प्राणों को वट वृक्ष के नीचे ही लौटाया था तथा उन्हें 100 पुत्रों का वरदान दिया था। कहा जाता है कि उसके पश्चात् से ही वट सावित्री व्रत और वट वृक्ष की पूजा की परंपरा आरम्भ हुई। मान्यता है कि वट सावित्री व्रत के दिन दिन बरगद पेड़ की पूजा करने से यमराज देवता के साथ त्रिदेवों की भी कृपा मिलती है।

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