हिंदू धर्म में सोलह संस्कारों की एक विस्तृत सूची है, जो जीवन के विभिन्न चरणों में व्यक्ति के आध्यात्मिक और सामाजिक विकास के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इनमें से अंतिम संस्कार (अंतिम संस्कार) मृत्यु के बाद किया जाता है और इसे सबसे महत्वपूर्ण संस्कारों में से एक माना जाता है। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में, विशेषकर गरुड़ पुराण में, अंतिम संस्कार के विशेष नियम और प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया है। इस लेख में, हम अंतिम संस्कार के नियमों और विशेषताओं पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे, विशेषकर रात के समय अंतिम संस्कार के बारे में वर्णन किए गए निर्देशों पर।
गरुड़ पुराण और अंतिम संस्कार के नियम
गरुड़ पुराण एक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है, जिसमें मृत्यु और उसके बाद के कर्मकांडों पर विस्तार से वर्णन किया गया है। यह पुराण मृत्यु के बाद की यात्रा और आत्मा के लोक परिभ्रमण की प्रक्रिया को समझाने में मदद करता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, अंतिम संस्कार एक धार्मिक अनिवार्यता है और इसे विशेष नियमों के अनुसार किया जाना चाहिए।
रात के समय अंतिम संस्कार का निषेध
गरुड़ पुराण में रात के समय अंतिम संस्कार करने के बारे में स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं। पुराण में वर्णित है कि सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार करना उचित नहीं है। इसके पीछे कई धार्मिक और आध्यात्मिक कारण बताए गए हैं:
आत्मा की शांति: गरुड़ पुराण के अनुसार, यदि अंतिम संस्कार रात में किया जाता है, तो मृतक की आत्मा को शांति नहीं मिलती। रात के समय अंतिम संस्कार करने से आत्मा की यात्रा बाधित हो सकती है और उसे शांति प्राप्त नहीं होती है।
स्वर्ग और नरक के द्वार: पुराण में यह भी वर्णन है कि सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार करने से स्वर्ग के द्वार बंद हो जाते हैं और नरक के द्वार खुल जाते हैं। यह मान्यता है कि इस प्रकार के कर्मकांड से मृतक को नरक का कष्ट भुगतना पड़ता है और आत्मा के लिए अनंत दुख और यातना की संभावना बढ़ जाती है।
अगले जन्म में दोष: गरुड़ पुराण में यह भी कहा गया है कि यदि किसी ने सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार किया तो अगले जन्म में मृतक का शरीर किसी अंग दोष या विकृति के साथ हो सकता है। यह मान्यता है कि रात के समय दाह संस्कार करने से व्यक्ति के अगले जीवन की शारीरिक स्थिति प्रभावित हो सकती है।
रात के समय मृत्यु होने पर क्या करें?
यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु रात के समय हो जाती है, तो गरुड़ पुराण के अनुसार शव को अगले दिन तक सुरक्षित रखा जाता है। सुबह होते ही, जब सूरज उगता है, तब दाह संस्कार की प्रक्रिया शुरू की जाती है। इसके लिए निम्नलिखित विधियों का पालन किया जाता है:
शव का रखरखाव: रात के समय शव को ठीक से संरक्षित रखने के लिए इसे ठंडे स्थान पर रखा जाता है, जहां शव की स्थिति बिगड़े नहीं। कभी-कभी शव को नमक या अन्य सामग्रियों से ढंककर रखा जाता है ताकि वह ताजगी बनाए रखे।
धार्मिक क्रियाएँ: सूर्योदय के बाद, अंतिम संस्कार की प्रक्रिया शुरू की जाती है। इसमें शव को दाह संस्कार के लिए तैयार किया जाता है और सभी धार्मिक अनुष्ठान, जैसे कि पूजन और प्रार्थना, किए जाते हैं।
संसारिक प्रक्रिया: सुबह होते ही, शव को अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट या उपयुक्त स्थल पर ले जाया जाता है। यहाँ पर अंतिम संस्कार की सभी विधियाँ पूरी की जाती हैं, जैसे कि अग्नि को अर्पित करना और शव को जलाना।
हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार के नियम और प्रक्रियाएँ अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। गरुड़ पुराण में वर्णित नियमों का पालन करने से मृतक की आत्मा को शांति मिलती है और अगले जन्म में भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। रात के समय अंतिम संस्कार करने के निषेध के पीछे गहरी धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताएँ हैं, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि मृतक की आत्मा शांति और समृद्धि की दिशा में यात्रा कर सके। इस प्रकार, गरुड़ पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में दिए गए निर्देशों का पालन करना हिंदू धार्मिक परंपराओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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