धमतरी: छत्तीसगढ़ के धमतरी में औलाद पाने के लिए महिलाएं मां अंगारमोती के दरबार में हाजिरी लगाती हैं। यह हाजिरी सबसे अलग है। यहां महिलाएं पेट के बल लेट जाती हैं तथा फिर बैगा उनके ऊपर से चलकर आगे बढ़ते हैं। यह मड़ई मेला प्रत्येक वर्ष दीपावली के पश्चात् पहले शुक्रवार को लगता है। इस बार मड़ई मेले में 300 से अधिक महिलाएं हाजिरी लगाने एवं संतान प्राप्ति की इच्छा से पहुंची। इसके लिए दूर-दराज के क्षेत्रों से महिलाएं गंगरेल आती हैं। लोगों की मान्यता एवं आस्था दोनों इससे जुड़ी है।
दरअसल, शहर से लगभग 12 किलोमीटर दूर मौजूद गंगरेल बांध के किनारे मां अंगारमोती विराजित हैं। मान्यता के मुताबिक, दिवाली के पश्चात् आने वाले पहले शुक्रवार को यहां मड़ई मेला लगता है। इस मेले में दूर-दूर से हजारों के आंकड़े में भक्त पहुंचे। यहां उन्होंने वनदेवी अंगारमोती के दर्शन कर अपने परिवार की सुख-शांति एवं समृद्धि की कामना की। मड़ई मेले में लगभग 52 गांवों के देची-देवता इस बार सम्मिलित हुए। लोगों का कहना है कि माता से मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है।
कहा जाता है कि जब गंगरेल बांध नहीं बना था, तो इस क्षेत्र में बसे गांवों में शक्ति स्वरूपा मां अंगारमोती अधिष्ठात्री देवी थीं। बांध बनने के पश्चात् सभी गांव डूब गए। इसके बाद माता के श्रद्धालुओं ने मां अंगारमोती की गंगरेल तट पर फिर से स्थापना की। तत्पश्चात, एक बार फिर से मां का दरबार लगना आरम्भ हो गया। पूरे वर्ष में मड़ई का दिन सबसे खास होता है। सैकड़ों के आँकड़े में लोग पहुंचते हैं तथा आदिवासी परंपरा व रीतियों के मुताबिक, पूजन-अर्चना करते हैं। इस बार यहां 300 से अधिक महिलाएं संतान प्राप्ति एवं मन्नत मांगने पहुंची थी। महिलाएं मंदिर के सामने हाथ में नारियल, अगरबत्ती, नींबू लिए लाइन में खड़ी रहीं। फिर एक-एक कर पेट के बल जमीन पर लेट गईं तथा उनके ऊपर से चलकर बैगा आगे बढ़ने लगे। कहा जाता है कि यहां तमाम बैगा आते हैं, जिन पर देवी सवार होती हैं। ये लोग झूमते, बेसुध से मंदिर की तरफ बढ़ते हैं। चारों तरफ ढोल-नगाड़े बजते रहेते हैं। उनको आता देख कर ही महिलाएं पेट के बल लेटती हैं। परम्परा है कि जिस भी महिला के ऊपर बैगा का पैर पड़ता है, उसे संतान के तौर पर माता अंगारमोती का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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