शिमला: हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस द्वारा किया गया पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) का वादा राज्य की आर्थिक स्थिति पर भारी पड़ने लगा है। ये वादा करके पार्टी सत्ता में तो आ गई, लेकिन अब वो खुद कह रही है कि OPS की वजह से राज्य पर आर्थिक बोझ दोगुना हो जाएगा। खबरों के मुताबिक, सूबे की सुखविंदर सुक्खू सरकार ने 16वें वित्त आयोग की टीम को बताया है कि आने वाले सालों में उसका पेंशन पर होने वाला खर्च तक़रीबन दोगुना हो जाएगा। यह नई पेंशन स्कीम में शामिल कर्मचारियों के पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) में जोड़े जाने की वजह से होगा।
हिमाचल की कांग्रेस सरकार ने बताया है कि वर्ष 2030-31 तक उसका पेंशन पर होने वाला खर्च 19,728 करोड़ रुपए हो जाएगा, जो आज की स्थिति में 10,000 करोड़ रुपए से भी कम है। वित्त वर्ष 2026-27 से 2030-31 के बीच हिमाचल प्रदेश सरकार को लगभग 90,000 करोड़ रुपए पेंशन पर ही खर्च करने पड़ेंगे। कांग्रेस के OPS के वादे से राज्य के अन्य विकास कार्यों के बजट में कटौती होने का अनुमान जताया जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि राज्य के बजट में पहले पेंशन की भागीदारी मात्र 13 फीसद थी, जो कि OPS आने के बाद बढ़कर 17 फीसद हो जाएगी, अब ये 4 फीसद बजट की रकम कहीं से तो काटनी पड़ेगी। OPS की वजह से होने वाला यह खर्च राज्य सरकार के कर्मचारियों को प्रदान की जाने वाली सैलरी पर खर्च के लगभग बराबर ही होगा।
रिपोर्ट के अनुसार, 2026-27 में हिमाचल सरकार अपने कर्मचारियों को 20,639 करोड़ तनख्वाह के रूप में भुगतान करेगी। वहीं, इस साल में दी जाने वाली पेंशन की रकम 16,728 करोड़ होगी। राज्य में पेंशन पाने वालों की तादाद भी आने वाले सालों में नौकरी कर रहे कर्मचारियों से अधिक हो जाने का अनुमान है। रिपोर्ट में ये भी दावा है कि, 2030-31 तक राज्य में 2.38 लाख पेंशनर हो सकते हैं। यह आंकड़ा आने वाले समय में राज्य कर्मचारियों से भी ज्यादा होगा, क्योंकि औसतन हर साल 10,000 कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं, लेकिन इसके अनुपात में नए कर्मचारी भर्ती नहीं हो रहे।
हिमाचल प्रदेश को 2026-27 से 2030-31 बीच वेतन और पेंशन पर कुल मिलाकर 2.11 लाख करोड़ का व्यय करना होगा। राज्य सरकार की आर्थिक स्थिति के मद्देनज़र यह अनुमान लगाया गया है कि वह इस बोझ को अकेले वहन नहीं कर सकेगी। इसके लिए उसे स्पेशल आर्थिक पैकेज की जरूरत होगी। कांग्रेस ने 2022 के हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में जोर-शोर से पुरानी पेंशन स्कीम का वादा किया था और इसे एक तरह से सियासी हथियार बना लिया था। हालाँकि, अब इसके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं, जो आर्थिक बोझ के कारण प्रदेश की अर्थव्यवस्था चरमराने की तरफ इशारा कर रहे हैं।
OPS के कारण राज्य पर पड़ने वाले आर्थिक भार के बीच सीएम सुखविंदर सिंह सुक्कू ने 16वें वित्त आयोग से मदद की डिमांड भी कर दी है। उन्होंने कहा है कि राज्य को विकास के लिए विशेष आर्थिक मदद प्रदान की जाए। इन सबके बीच कांग्रेस सरकार का धुआंधार तरीके से कर्ज लेने का मुद्दा भी सुर्ख़ियों में है। हिमाचल प्रदेश पर इस समय 88,000 करोड़ से भी अधिक का कर्ज है। जिसमे से पिछले डेढ़ सालों में ही कांग्रेस सरकार ने 19,000 करोड़ का कर्ज राज्य पर चढ़ा दिया है।
सीएम सुक्खू ने खुद स्वीकार किया है कि उनके राज्य को कर्ज चुकाने के लिए ही नया कर्ज उठाना पड़ रहा है। राज्य का कर्ज उसकी GDP का 40 फीसद से ज्यादा हो चुका है। उसका राजकोषीय घाटा भी GDP के 5 फीसद के ऊपर है। जबकि नियमों के अनुसार, किसी भी राज्य का कर्ज GDP का 20 फीसद जबकि राजकोषीय घाटा 3 फीसद से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
कर्नाटक में भी यही स्थिति, स्पेशल पैकेज की मांग :-
उल्लेखनीय है कि, कर्नाटक सरकार इस समय आर्थिक तंगी का सामना कर रही है। राज्य की कांग्रेस सरकार ने चुनावों के वक़्त जनता से जो फ्री के वादे किए थे, उसे पूरा करने में सरकार के ख़ज़ाने पर काफी बोझ पड़ रहा है। इन वादों से 5.10 करोड़ लोगों को लाभ मिलने का दावा किया गया है और इनको पूरा करने से 2023-24 में राज्य पर 36,000 करोड़ रुपये का खर्च का अनुमान है। चालू वित्त वर्ष के लिए इन योजनाओं के लिए आवंटित बजट 52,009 करोड़ रुपये है। लेकिन, चुनावी गारंटियों को पूरा करने के बाद कांग्रेस सरकार के पास विकास के लिए पैसा नहीं बचा है। एक बैठक में जब कांग्रेस विधायक अपने क्षेत्रों में विकास कार्य के लिए फंड मांगने डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के पास गए थे, तो उन्होंने कहा था कि, अभी हमने गारंटियों को पूरा करने में पैसा लगाया है, विकास के लिए अभी फंड नहीं है।
हालाँकि, राज्य सरकार के पास फंड की कमी फिर भी बनी हुई है, सरकार बनने के बाद कांग्रेस ने अपनी 5 चुनावी गारंटियों को पूरा करने के लिए SC/ST वेलफेयर फंड से 11 हजार करोड़ रुपये निकाल लिए थे। बता दें कि, कर्नाटक शेड्यूल कास्ट सब-प्लान और ट्रायबल सब-प्लान एक्ट के मुताबिक, राज्य सरकार को अपने कुल बजट का 24.1% SC/ST के उत्थान के लिए खर्च करना पड़ता है। लेकिन उन 34000 करोड़ में से भी 11000 करोड़ रुपए राज्य सरकार ने निकाल लिए। इसके बाद राज्य सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए एक योजना शुरू की, जिसमे उन्हें वाहन खरीदने पर 3 लाख तक की सब्सिडी देने का ऐलान किया था। उस योजना के अनुसार, यदि कोई अल्पसंख्यक 8 लाख रुपये की कार खरीदता है, तो उसे मात्र 80,000 रुपये का शुरूआती भुगतान करना होगा। 3 लाख रुपए राज्य सरकार देगी, यही नहीं बाकी पैसों के लिए भी बैंक ऋण सरकार ही दिलाएगी। वहीं, इस साल बजट में कांग्रेस सरकार ने ईसाई समुदाय के लिए 200 करोड़, और वक्फ बोर्ड के लिए 100 करोड़ आवंटित किए थे, इसके बाद कमाई करने के लिए मंदिरों पर 10 फीसद टैक्स लगाने का बिल लेकर आई थी, लेकिन भाजपा के भारी विरोध के कारण वो बिल पास नहीं हो सका था। हालांकि, 2024-25 के लिए राज्य का कुल राजस्व घाटा बजट 3,71,383 करोड़ रुपये है, जिसमें पहली बार राज्य की उधारी 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गई है।
इसी साल जब राज्य में सूखा पड़ा, तो भी राज्य सरकार के पास पैसा नहीं था, केंद्र द्वारा उसे 3500 करोड़ रुपए जनता को राहत देने के लिए प्रदान किए गए थे। अभी कुछ दिन पहले ही राज्य सरकार ने पेट्रोल-डीज़ल पर एकसाथ 3 रुपए बढ़ा दिए थे, एक मंत्री ने कहा था कि, विकास और गारंटियों को पूरा करने के लिए धन चाहिए, इसलिए कीमतों में वृद्धि की गई है। इसके अलावा, कांग्रेस सरकार ने अपनी कमाई बढ़ाने के उपाय बताने के लिए एक अमेरिकी फर्म बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (BCG) को काम पर रखा गया है, जिस पर छह महीने में राज्य को 9.5 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। इस अमेरिकी फर्म ने सुझाव देना भी शुरू कर दिए हैं, हो सकता है दूध में वृद्धि भी इसी का सुझाव हो। मौजूदा समय में कर्नाटक सरकार ने संपत्ति मार्गदर्शन मूल्यों में भी 15-30% का इजाफा किया, भारतीय निर्मित शराब (IML) पर 20% अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (AED) लगाया, बीयर पर AED को 175% से बढ़ाकर 185% किया और नए पंजीकृत परिवहन वाहनों पर 3% अतिरिक्त उपकर लागू किया। 25 लाख रुपये से अधिक की लागत वाले इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) पर आजीवन टैक्स का प्रावधान किया और गैर-पंजीकरण-आवश्यक दस्तावेजों के लिए स्टांप शुल्क 200% से बढ़ाकर 500% कर दिया गया। ये तमाम चीज़ें, संपत्ति कर, जल कर और बस किराए में भविष्य में वृद्धि का भी संकेत देती हैं। इसके अलावा कर्नाटक सरकार ने इंजीयरिंग कॉलेज की फीस में भी 10 फीसद का इजाफा कर दिया है, जो छात्रों के लिए बड़ा झटका है।
हालाँकि, इसके बावजूद राज्य में आर्थिक संकट बना हुआ है और कुछ दिन पहले ही कांग्रेस सरकार ने केंद्र से 11 हज़ार करोड़ रुपए का स्पेशल पैकेज देने की मांग की है। दरअसल, चुनावों के दौरान ही अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी थी कि, पार्टी जिस तरह से वादे कर रही है, उससे हो सकता है कि वो चुनाव जीत जाए, लेकिन इससे राज्य सरकार के ख़ज़ाने पर भारी बोझ पड़ेगा और व्यवस्था चरमरा जाएगी, लेकिन कांग्रेस ने सलाह नहीं मानी और आज सचमुच राज्य आर्थिक संकट में घिर गया। 200 यूनिट बिजली फ्री के वादे से बिजली का अंधाधुंध दोहन हुआ और फिर नौबत कटौती की आ गई, जिस बेल्लारी को राहुल गांधी ने 5000 करोड़ देकर जीन्स कैपिटल बनाने का वादा किया था, वहां 5-6 घंटे बिजली गुल रहने से कारोबार ठप्प हो गया और कई लोग महाराष्ट्र, गोवा जैसे पड़ोसी राज्यों में चले गए। इस लोक सभा चुनाव में भी पार्टी ने महिलाओं को खटाखट 1 लाख, बेरोज़गारों को 1 लाख, हर बार किसानों के कर्जे माफ़ जैसे लोकलुभावन वादे किए थे, लेकिन सोचिए जब 2000 देने में ही राज्य का खज़ाना खाली हो गया है, तो 1 लाख रुपए कहाँ से दिए जाते ? एक अनुमान के तौर पर 140 करोड़ की देश की आबादी में यदि 25 करोड़ गरीब महिलाएं भी मानें, तो उन्हें साल के 25 लाख करोड़ रुपए जाते, जो देश के कुल बजट का आधा हिस्सा है। इसके बाद बेरोज़गार, किसान, शिक्षा, स्वास्थय, रक्षा, विकास, सड़क, पानी जैसे मुद्दों का क्या होता ?
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