कोलकाता: भारत की स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में कुछ वीर योद्धा ऐसे भी हैं, जिनका नाम शायद ही कभी इतिहास की किताबों में मिलेगा। इन योद्धाओं ने अपने शौर्य और बलिदान से अंग्रेजों की जड़ों को हिला दिया, लेकिन आज़ादी के बाद की सरकारों ने उनकी वीरता को भुला दिया गया और आज़ादी के लिए केवल एक परिवार के प्रयासों को प्रमुखता से दिखाया और पढ़ाया गया। इनमे से एक प्रमुख घटना बंगाल के मिदनापुर जिले की है, जहाँ दो युवा क्रांतिकारियों ने तीन अंग्रेज जिलाधिकारियों की हत्या कर दी थी।
मिदनापुर जिले में क्रांतिकारी गतिविधियाँ चरम पर थीं, जिससे परेशान होकर अंग्रेजों ने जेम्स पेड्डी को जिलाधिकारी नियुक्त किया। पेड्डी अत्यंत क्रूर था और छोटी-मोटी बातों पर भी कठोर सजाएँ देता था। क्रांतिकारियों ने शासन को चेतावनी दी कि पेड्डी के स्थान पर किसी भारतीय अधिकारी को भेजा जाए, लेकिन अंग्रेजों ने उनकी बात नहीं मानी। परिणामस्वरूप, एक दिन क्रांतिकारियों ने पेड्डी को गोली मार दी। अंग्रेज इस घटना से परेशान हो गए और पेड्डी की जगह रॉबर्ट डगलस को भेजा। डगलस भी क्रूर था और एक दिन अपने कार्यालय में काम कर रहा था, तभी दो युवाओं ने उसे गोली मार दी। डगलस की हत्या के बाद भी अंग्रेजों ने कोई सबक नहीं सीखा और बी.ई.जे. बर्ग को भेजा। बर्ग फुटबॉल का शौक़ीन था और 2 सितंबर, 1933 को फुटबॉल मैच के दौरान अनाथ बन्धु और मृगेन्द्र कुमार दत्त ने उसकी हत्या कर दी।
बर्ग की हत्या के बाद, उसके अंगरक्षकों ने अनाथ बन्धु और मृगेन्द्र पर गोलियाँ चलानी शुरू की, जिससे दोनों घायल हो गए। अनाथ बन्धु ने मौके पर ही दम तोड़ दिया, जबकि मृगेन्द्र को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी भी मौत हो गई। इस घटना के बाद, पुलिस ने इलाके को घेर लिया और हर खिलाड़ी की तलाशी ली। निर्मल जीवन घोष, ब्रजकिशोर चक्रवर्ती और रामकृष्ण राय को भी गिरफ्तार किया गया, क्योंकि उनके पास से रिवॉल्वर मिली थी, अगर अनाथ बंधू और मृगेंद्र नाकाम होते तो ये क्रन्तिकारी अंग्रेज़ों की हत्या करते। इससे घबराकर अंग्रेज़ों ने उन तीनों को भी फाँसी पर चढ़ा दिया। तीन जिलाधिकारियों की हत्या के बाद, अंग्रेजों ने तय किया कि मिदनापुर में अब कोई भारतीय ही जिलाधिकारी बने। इन क्रांतिकारियों के बलिदान ने अंग्रेजों को भयभीत कर दिया और उनके शासन को झुका दिया। आज भी इन वीरों की वीरता को इतिहास में उचित स्थान नहीं मिला है।
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