नई दिल्ली: रिप्रजेंटेशन ऑप पीपल एक्ट के सेक्शन 8 (3) के तहत ही कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को अपनी सांसदी गंवाना पड़ा था। उस मामले के बाद शीर्ष अदालत में एक सोशल एक्टिविस्ट ने याचिका दाखिल करते हुए अपील की थी कि इस सेक्शन को खत्म कर दिया जाए। मगर, सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका पर सुनवाई करने से साफ इनकार कर दिया है। प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि आपको इस सेक्शन से कोई समस्या हुई है क्या। फिर उन्होंने कहा कि जब आपको कोई दिक्क्त हो, तब याचिका दाखिल कीजिये, डिसमिस।
बता दें कि, इस सेक्शन में प्रावधान है कि किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को यदि दो या उससे अधिक साल की सजा होती है, तो उसकी सांसदी या विधायकी अपने आप ही निरस्त हो जाएगी। इसी सेक्शन के तहत राहुल गांधी की सांसदी भी गई थी और अब एक सोशल एक्टिविस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में इस सेक्शन को रद्द करने की याचिका लगा दी थी। याचिका पर CJI के नेतृत्व वाली बेंच में सुनवाई हुई। जिसमे न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला भी मौजूद थे।
सोशल एक्टिविस्ट आभा मुरलीधरन ने रिप्रजेंटेशन ऑप पीपल एक्ट 1951 के सेक्शन 8(3) की संवैधानिक वैधता पर सवाल खड़े करते हुए सर्वोच्च न्यायालय से इसमें हस्तक्षेप करने की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि सेक्शन 8(3) अल्ट्रा वायरस है। इससे फ्री स्पीच पर रोक लगती है। संविधान में फ्री स्पीच को एक अधिकार की मान्यता दी गई है। आभा का कहना था कि राजनेता इस सेक्शन के कारण सहमे हुए हैं। वोटर्स ने राजनेताओं को जो अधिकार दिया है, वो उसे पूरा करने में भी खुद को असमर्थ पा रहे हैं। इसलिए शीर्ष अदालत सेक्शन 8(3) पर सुनवाई करके कोई ठोस फैसला जारी करे। इस पर CJI ने कहा कि, जब इस सेक्शन से आपको कोई समस्या हो, तब आइएगा। यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
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