रतलाम-लोहारदागा-कच्छ के बाद सूरत में गणेश पांडाल पर पथराव, आखिर चाहते क्या हैं कट्टरपंथी ?

रतलाम-लोहारदागा-कच्छ के बाद सूरत में गणेश पांडाल पर पथराव, आखिर चाहते क्या हैं कट्टरपंथी ?
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सूरत: गुजरात के सूरत जिले में आज सोमवार (9 सितंबर) तड़के कुछ नाबालिगों द्वारा गणेश पंडाल पर पथराव करने के बाद तनाव फैल गया। यह घटना शहर के सैयदपुरा इलाके में हुई, जिसके बाद हजारों स्थानीय लोग आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर स्थानीय पुलिस इकाई के पास पहुंचे।

घटना की सूचना मिलते ही भारी पुलिस बल मौके पर पहुंच गया और स्थिति को नियंत्रण में किया। पुलिस ने गुस्साई भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज और आंसू गैस का भी इस्तेमाल किया। मीडिया से बात करते हुए सूरत के पुलिस कमिश्नर अनुपम गहलोत ने कहा कि, "कुछ बच्चों ने गणेश पंडाल पर पत्थरबाजी की जिसके बाद झड़प हो गई। पुलिस ने तुरंत उन बच्चों को वहां से हटा दिया... इलाके में तुरंत पुलिस तैनात कर दी गई। जहां जरूरत थी, वहां लाठीचार्ज किया गया और आंसू गैस का इस्तेमाल किया गया... शांति भंग करने वाले सभी आरोपियों को गिरफ्तार किया जा रहा है। चारों तरफ करीब 1,000 पुलिसकर्मी तैनात हैं। और यहां आम जनता भी मौजूद है।"

 

रात करीब 2.30 बजे गुजरात के गृह मंत्री हर्ष संघवी और स्थानीय भाजपा विधायक कांति बलार ने भी घटनास्थल का दौरा किया और इलाके में तनाव कम करने के लिए स्थानीय लोगों से बात की। संघवी के अनुसार, गणेश पंडाल पर कथित तौर पर पत्थर फेंकने वाले छह नाबालिगों को पुलिस ने हिरासत में लिया है। इसके अलावा, पुलिस ने 27 अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया है, जिन्होंने कथित तौर पर पत्थरबाजी को बढ़ावा दिया था।

 

पुलिस कार्रवाई के बारे में जानकारी देते हुए सांघवी ने कहा कि अन्य आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए इलाके के सीसीटीवी फुटेज को स्कैन किया गया। उन्होंने एक सोशल मीडिया पोस्ट में बताया कि, "जैसा कि मैंने वादा किया था, हमने सूर्योदय से पहले पत्थरबाजों को पकड़ लिया है! 6:30 बजे सूरत में  27 पत्थरबाजों को गिरफ्तार किया गया, सीसीटीवी, वीडियो विजुअल, ड्रोन विजुअल और अन्य तकनीकी निगरानी कार्य अभी भी जारी है। सभी आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। हमारी टीमों ने पूरी रात काम किया है और पत्थरबाजों की पहचान करने और उन्हें न्याय दिलाने के लिए अभी भी काम कर रही हैं। जय गणेश !!"

बता दें कि, इससे पहले बीते दो दिनों में मध्य प्रदेश के रतलाम, झारखंड के लोहारदागा, गुजरात के कच्छ और अन्य जगहों से भी ऐसी ही खबरें सामने आई हैं, जहाँ गणेश पंडाल पर या गणेश जी की प्रतिमा पर मुस्लिम समुदाय द्वारा पथराव किया गया है। हालंकि, ये घटनाएं और इन पर राजनेताओं की चुप्पी कई सवालों को जन्म देती हैं। आखिर मुस्लिम समुदाय के कुछ वर्गों में हिंदू त्योहारों के प्रति इतनी गहरी दुश्मनी क्यों है? जबकि लाखों हिंदू हाजी अली और अजमेर शरीफ जैसे धार्मिक स्थलों पर श्रद्धा और भक्ति के साथ जाते हैं, ऐसा क्यों है कि मुस्लिम बहुल इलाकों से एक भी धार्मिक जुलूस बिना किसी घटना के नहीं निकल पाता? यह कोई अकेली घटना नहीं है - रामनवमी, हनुमान जन्मोत्सव और सावन सोमवार जैसे हिंदू जुलूसों पर हमले चिंताजनक रूप से लगातार होते रहे हैं।

हां, यह तो समझ में आता है कि इस्लाम में मूर्ति पूजा पाप माना जाता है, लेकिन क्या इससे भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में दूसरों को अपने धर्म का पालन करने से रोका जा सकता है? अगर भारत में ऐसी घटनाएं हो सकती हैं, जहां धर्मनिरपेक्षता एक मुख्य सिद्धांत है, तो मुस्लिम बहुल देशों में अल्पसंख्यकों का क्या हश्र होगा? बांग्लादेश की स्थिति, जहां मंदिरों को खुलेआम ध्वस्त किया जाता है और पुलिस थानों के अंदर हिंदुओं की हत्या की जाती है, धार्मिक सहिष्णुता की एक निराशाजनक तस्वीर पेश करती है। तो, क्या हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि मुस्लिम समुदाय के लिए अन्य समुदायों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व असंभव है? वहीं, राजनेता इन कट्टरपंथियों की लगातार हो रही हरकतों पर सिर्फ वोट बैंक की लालच में मुंह में दही जमाए बैठे हैं

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