'अफजल गुरु को फांसी नहीं होने देते..', उमर अब्दुल्ला के मन की बात, भड़की भाजपा

'अफजल गुरु को फांसी नहीं होने देते..',  उमर अब्दुल्ला के मन की बात, भड़की भाजपा
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श्रीनगर: भाजपा प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की अफजल गुरु पर की गई टिप्पणी पर प्रतिक्रिया दी। भंडारी ने कहा कि उमर का बयान भारत गठबंधन की उस मानसिकता को दर्शाता है, जो आतंकवादियों के प्रति नरमी रखती है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर में विकास का विजन अपनाया गया है, जो घाटी से आतंकवाद को खत्म करने की दिशा में काम कर रहा है। पिछले 10 सालों में जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की कोई घटना नहीं हुई है और आतंकवाद भी कम हुआ है। भाजपा प्रवक्ता ने विश्वास जताया कि जम्मू-कश्मीर के लोग विकास के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए भाजपा सरकार को चुनेंगे।

इसके साथ ही, भाजपा नेता अल्ताफ ठाकुर ने उमर अब्दुल्ला पर आरोप लगाया कि वह चुनाव जीतने के लिए पाकिस्तान की नीति और समर्थन को अपना रहे हैं। ठाकुर का मानना है कि अब्दुल्ला आगामी चुनावों को लेकर डरे हुए हैं और इसलिए इस प्रकार की बयानबाजी कर रहे हैं। उमर अब्दुल्ला ने अफजल गुरु की फांसी पर कहा था कि जम्मू-कश्मीर सरकार का इस फैसले में कोई हाथ नहीं था। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि राज्य सरकार की अनुमति की आवश्यकता होती, तो वे इसकी मंजूरी नहीं देते और अफजल गुरु को फांसी नहीं होती। उमर ने यह भी कहा कि उन्हें नहीं लगता कि अफजल गुरु को फांसी देने से कोई विशेष उद्देश्य पूरा हुआ।  इस समय अब्दुल्ला की पार्टी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनावी मैदान में है। 

उल्लेखनीय है कि अफजल गुरु की फांसी रोकने के लिए कई प्रयास किए गए थे। सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की गई थी, जिसमें अफजल गुरु की सजा माफ करने की मांग की गई थी। इन याचिकाओं में एक याचिका अफजल गुरु की पत्नी तबस्सुम और बेटे गालिब द्वारा दायर की गई थी। उस समय कुछ मानवाधिकार संगठनों और वकीलों ने भी फांसी रोकने का प्रयास किया था, लेकिन अदालत ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया। अफजल गुरु को 2013 में, यूपीए सरकार के समय, तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी। हालाँकि, कांग्रेस समर्थक वामपंथी आज भी JNU में नारे लगाते हैं कि, ''अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिन्दा हैं।'' एक तरह से वो सुप्रीम कोर्ट के जजों को अफजल का हत्यारा बताते हैं। उमर अब्दुल्ला ने भी अब अपने मन की बात कह दी है, कि अगर उनकी सरकार की मंजूरी ली जाती, तो वे फांसी नहीं होने देते। हालाँकि, हो सकता है अब्दुल्ला के मन में इससे अधिक भी कुछ हो, लेकिन सार्वजनिक जगहों पर सबकुछ कहा तो नहीं जा सकता ना।  

अफजल की फांसी के ठीक सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति पर भी दबाव बनाने की काफी कोशिश की गई थी, करीब 200 बुद्धिजीवियों ने फांसी के फैसले की निंदा करते हुए पत्र लिखा था, जिसमे जामिया के विद्वान और बड़े बड़े वकील भी शामिल थे। हालाँकि, अदालत और तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कोई हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और फांसी की सजा को बरकरार रखा। अफजल गुरु को संसद पर हमले के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, जो 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के कार्यकाल के दौरान हुआ था।

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