विशाखापत्तनम: आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड द्वारा जारी किए गए एक फतवे पर केंद्र की मोदी सरकार ने सख्त नाराजगी जाहिर की है। दरअसल, इस फतवे के माध्यम से वक्फ बोर्ड ने अहमदिया समाज को ‘गैर मुस्लिम’ और ‘काफिर’ घोषित कर दिया है। केंद्र सरकार ने इसे घृणा फैलाने वाली हरकत करार देते हुए राज्य सरकार से जवाब मांगा है कि किस ‘आधार’ और ‘अधिकार’ से यह फतवा जारी किया गया है। बता दें कि, अहमदिया मुस्लिमों ने इसके खिलाफ केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय में शिकायत की थी।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय ने आंध्र प्रदेश सरकार को एक पत्र लिखते हुए कहा है कि, 'अहमदिया मुस्लिम समुदाय की तरफ से 20 जुलाई 2023 को एक शिकायत मिली है। शिकायत में कहा गया है कि कुछ वक्फ बोर्ड, अहमदिया समुदाय का विरोध कर रहे हैं और उन्हें इस्लाम से बाहर करने के लिए अवैध प्रस्ताव पारित कर रहे हैं। यह अहमदिया समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने वाली हरकत है। वक्फ बोर्ड के पास अहमदिया सहित किसी भी समुदाय की धार्मिक पहचान तय करने का अधिकार नहीं है।'
अल्पसंख्यक मंत्रालय ने अपने पत्र में आगे कहा है कि वक्फ अधिनियम 1995 के तहत वक्फ बोर्ड को भारत में वक्फ संपत्तियों की निगरानी और उनके प्रबंधन का अधिकार है। राज्य वक्फ बोर्ड को ऐसा आदेश पारित करने का कोई अधिकार नहीं है। मंत्रालय ने आगे कहा है कि, 'वक्फ अधिनियम 1955 के के तहत वक्फ बोर्ड राज्य सरकार के एक निकाय के तौर पर कार्य कर सकता है। इसका अर्थ यह है कि वक्फ बोर्ड राज्य सरकार द्वारा जारी आदेशों पर कार्य कर सकता है। उसे किसी भी गैर-सरकारी संगठनों द्वारा जारी फतवों पर संज्ञान लेने का किसी तरह का कोई अधिकार नहीं है।' मंत्रालय की तरफ से यह भी कहा गया है कि वक्फ बोर्ड ने अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है। उसे इस प्रकार के आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है। खासकर तब, जब इस प्रकार के आदेश से किसी समुदाय विशेष के खिलाफ नफरत और असहिष्णुता पैदा हो सकती है।
क्या है मामला :-
बता दें कि इस पूरे मामले की शुरुआत वर्ष 2012 में हुई थी। आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने अहमदिया को गैर-मुस्लिम (काफिर) घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था। वक्फ बोर्ड के इस फैसले को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। जिसके बाद अदालत ने वक्फ बोर्ड के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी थी। लेकिन, इसके बाद भी आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने इसी साल फरवरी में एक और प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव में कहा गया कि 26 मई, 2009 को जमीयत उलेमा ए हिन्द द्वारा जारी किए फतवे को देखते हुए ‘कादियानी समुदाय’ को ‘काफिर’ घोषित किया जाता है। ये मुसलमान नहीं हैं। बता दें कि अहमदिया मुस्लिमों को 'कादियानी' भी कहते हैं। पाकिस्तान में भी अहमदिया मुस्लिमों को काफिर घोषित कर दिया गया है, जिसके बाद से कट्टरपंथी उनके धर्मस्थलों, घरों, यहाँ तक कि कब्रों पर भी हमले कर रहे हैं। पाकिस्तान में अहमदी मुसलमानों की कब्र तक खोदकर उजाड़ दी जाती है। हालाँकि, अहमदी मुसलमान भी अल्लाह को ही मानते हैं, लेकिन मामूली मतभेद होने के कारण बाकी के मुसलमान उनका विरोध करते हैं।
आम मुसलमान और अहमदी मुसलमान में क्या भेद ?
बता दें कि, अविभाजित पंजाब के लुधियाना जिले के कादियान गाँव में मिर्जा गुलाम अहमद ने वर्ष 1889 में अहमदिया समुदाय की नींव रखी थी। मिर्जा गुलाम अहमद अपने आप को पैगंबर मोहम्मद का अनुयायी और अल्लाह की तरफ से चुना गया मसीहा कहते थे। मिर्जा गुलाम अहमद ने इस्लाम का पुनरुत्थान शुरू किया था। इसे अहमदी आंदोलन और इसमें शामिल हुए मुस्लिमों को अहमदिया कहा गया। अहमदिया मुस्लिम गुलाम अहमद को पैगंबर मोहम्मद के बाद का एक और पैगंबर या अंतिम पैगंबर मानते हैं। यही बात अन्य मुसलमानों को पसंद नहीं आती, उनका तर्क है कि, पैगंबर मोहम्मद ही अंतिम पैगंबर थे और बस इसी बात को लेकर आम मुसलमान, अहमदी मुस्लिमों का विरोध करते हैं। यहाँ तक कि, अहमदी मुस्लिमों को गैर-मुस्लिम या काफिर भी घोषित कर दिया जाता है, जैसा पाकिस्तान में हो चूका है और अब भारत में वक्फ बोर्ड ने इस संबंध में फतवा जारी किया है। चूँकि गुलाम अहमद कादियान गाँव से ताल्लुक रखते थे। इसलिए अहमदिया मुस्लिमों को कादियानी भी कहते है।
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