नई दिल्ली: कोरोना के कारण देश का प्रत्येक वर्ग ग्रसित है वही अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के परिसर में सन्नाटा पसरा हुआ है। खाली सड़कें, वीरान कैंपस। केवल कब्रिस्तान ही ऐसा स्थान है जहां लोग किसी न किसी अपने को अंतिम विदाई देते नजर आते हैं। यूनिवर्सिटी के कब्रिस्तान में स्थान कम पड़ गया है, किन्तु शवों का आना नहीं रुक रहा। जगह की कमी के कारण से पुरानी कब्रों को ही खोदा जा रहा है।
यहीं के रहने वाले नदीम बोलते हैं- “मैंने ऐसा दशकों से नहीं देखा। मैं यहां हर दिन फातिहा (प्रार्थना) पढ़ने आता था। पहले यहां और लोग भी अपने बिछड़ों को याद करने के लिए आते थे। अब मैं सप्ताह में एक बार आता हूं। लोग दहशत में हैं। प्रतिदिन यहां 8 से 10 मय्यत आती हैं तथा उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया जाता है। साथ आने वाले लोग मिल कर नमाज अदा करते हैं।”
वही यूनिवर्सिटी कैंपस में जितनी मौतें बीते कुछ सप्ताह में हुईं हैं, इतनी बीते एक वर्ष में भी नहीं हुईं। कई सीनियर फैकल्टी सदस्य कोरोना वायरस से संक्रमित होने के पश्चात् दुनिया छोड़कर चले गए। टीचिंग समुदाय में मौतों की इतनी बड़ी संख्या से सभी सकते में हैं। ऐसे में प्रश्न किया जा रहा है कि क्या वायरस का घातक ‘AMU स्ट्रेन’ यूनिवर्सिटी पर इतना खतरा बरपा रहा है? प्रॉक्टर प्रोफेसर मोहम्मद वसीम अली बोलते हैं, पिछले 20 दिन में हमने अपनी फैकल्टी के 16 सदस्यों को खोया है। मेडिसिन डिपार्टमेंट के चेयरमैन से लेकर लॉ फैकल्टी के डीन सहित कई प्रख्यात टीचर्स हमें छोड़कर चले गए।
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