इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक आदेश में बोला है कि राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर असंतोष व्यक्त करना अपराध नहीं माना कहा जा सकता है। प्रदेश की कानून व्यवस्था पर जंगल राज की टिप्पणी से कोई आपराधिक केस नहीं बनता है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भाग कहा जाता है। जंहा इस बारें में न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि "अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की एक पहचान है। हाई कोर्ट ने कानपुर देहात जिले के भोगनीपुर थाने में इंटरनेट मीडिया में जंगल राज कहने की टिप्पणी पर दर्ज FIR रद्द की जा चुकी है। कोर्ट ने यह आदेश यशवंत सिंह की ओर से मामला दर्ज करते हुए याचिका को स्वीकार लकर लिया है।
मिली जानकारी के अनुसार इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बोला कि याची के विरुद्ध लगाई गई धाराओं से अपराध का कोई केस नहीं बनता है, इसलिए जिसके विरुद्ध FIR रद्द की गई है। याची ने ट्वीट किया था कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने यूपी को जंगलराज में परिवर्तन किया है, जहां कानून व्यवस्था नहीं है। कोर्ट में याची की ओर से बोला गया कि राज्य के मामलों में टिप्पणी करना किसी भी व्यक्ति के सांविधानिक अधिकारों का भाग है और महज मतभेद व्यक्त करना जुर्म नहीं हो सकता।
पुलिस ने यशवंत पर सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम के अंतर्गत धारा 500 (मानहानि) और 66-डी (कंप्यूटर संसाधन का उपयोग करके व्यक्ति द्वारा धोखाधड़ी करने का जुर्म) के तहत मामला दर्ज किया था। हाई कोर्ट में याची के वकील ने FIR को चुनौती दी, जिसमें कहा गया था कि राज्य के मामलों पर टिप्पणी करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत परिकल्पित सांविधानिक अधिकार के अंतर्गत आता है।
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