लखनऊ: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दो निकाह करने वाले एक व्यक्ति के मामले में अहम फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने इस मामले में सोमवार (10 अक्टूबर 2022) को सुनवाई करते हुए कहा है कि, 'कुरान के मुताबिक, एक मुस्लिम व्यक्ति दूसरा निकाह तभी कर सकता है, जब वह अपनी पहली पत्नी और बच्चों को पालने में सक्षम हो। अगर वह उन्हें पालने में असमर्थ है, तो उसे दूसरा निकाह करने का कोई अधिकार नहीं है।'
इलाहबाद हाई कोर्ट ने सूरा 4 आयत 3 (कुरान) का हवाला देते हुए कहा है कि, 'दूसरा निकाह तभी किया जा सकता है, जब शौहर अपनी पहली बीवी और उससे हुए बच्चों का भरण पोषण करने में समर्थ हो। यह बात सभी मुस्लिम पुरुषों पर लागू होती है।' इसके बाद हाई कोर्ट ने शौहर अजीजुर्रहमान की याचिका खारिज कर दी। जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस राजेंद्र कुमार की बेंच ने कहा है कि, 'जिस समाज में महिला का सम्मान नहीं, उसे सभ्य समाज नहीं कहा जा सकता। महिलाओं का सम्मान करने वाले देश को ही सभ्य देश कहा जा सकता है। मुस्लिमों को खुद ही पहली पत्नी के रहते दूसरा निकाह करने से बचना चाहिए। कुरान भी एक बीवी के साथ इंसाफ न कर पाने वाले मुस्लिम व्यक्ति को दूसरे निकाह की अनुमति नहीं देता।'
दो न्यायाधीशों की बेंच ने शीर्ष अदालत के तमाम फैसलों का हवाला देते हुए आगे कहा कि संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्रत्येक नागरिक को गरिमामय जीवन जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार मिला हुआ है। अनुच्छेद-14 सभी को समानता का अधिकार प्रदान करता है और अनुच्छेद-15(2) लिंग आदि के आधार पर पक्षपात करने पर रोक लगाता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अजीजुर्रहमान और हमीदुन्निशा का निकाह 12 मई 1999 को हुआ था।
वादी बीवी अपने अब्बा की इकलौती संतान है, जिसके कारण उसके अब्बा ने अपनी सारी संपत्ति उसे दान कर दी है। महिला अपने तीन बच्चों के साथ 93 साल के अब्बा की देखभाल करती है। उसके शौहर ने उसे बगैर बताए दूसरा निकाह कर लिया और उससे भी उसके बच्चे हैं। शौहर ने फैमिली कोर्ट में दूसरी पत्नी को अपने साथ रखने के लिए केस दाखिल किया था। जब यहाँ अजीजुर्रहमान के पक्ष में फैसला नहीं आया, तो उसने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी, जिसे उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है।
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