बैंगलोर: कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने कोविड-19 महामारी के दौरान हिजाब को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों से जुड़े कुछ मामलों को वापस लेने का फैसला किया है, जिससे राज्य में राजनीतिक विवाद गहरा गया है। कलबुर्गी जिले के अलंद में "हिजाब हमारा अधिकार है" नामक रैली का नेतृत्व करने वाले AIMIM के नेता जहीरुद्दीन अंसारी समेत कई नेताओं पर लगे आरोप राज्य मंत्रिमंडल द्वारा वापस ले लिए गए हैं। ये प्रदर्शन महामारी की तीसरी लहर के दौरान हुए थे, जिससे महामारी रोग अधिनियम के तहत उन पर कानूनी कार्रवाई की गई थी। इस कदम की आलोचना करते हुए विपक्षी दलों ने सरकार पर राजनीतिक पक्षपात और तुष्टिकरण के आरोप लगाए हैं।
हालाँकि, सरकार ने दावणगेरे जिले के हरिहर में हिजाब विरोधी प्रदर्शन करने वाले हिंदू छात्रों के खिलाफ़ दर्ज मामलों को वापस लेने से मना कर दिया है। उन पर मुस्लिम लड़कियों से जबरन हिजाब हटवाने, गैरकानूनी ढंग से इकट्ठा होने और दंगा करने के आरोप थे। एक उपसमिति ने इन मामलों को भी वापस लेने की सिफारिश की थी, लेकिन राज्य मंत्रिमंडल ने इन आरोपों को कायम रखा, जिसके कारण विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इसे राजनीतिक पूर्वाग्रह करार दिया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र ने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह फैसला मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर लगे एमयूडीए भूमि घोटाले के आरोपों से ध्यान हटाने की कोशिश है।
Congress in Karnataka first withdraws cases on AIMIM rioters
— Shehzad Jai Hind (Modi Ka Parivar) (@Shehzad_Ind) October 14, 2024
And now to formalise their Political Nikaah with Owaisi they have withdrawn more cases on MIM leaders and pro Hijab protestors
But cases on anti Hijab protestors not withdrawn even though they were championing cause… pic.twitter.com/UL1AvkntRl
वरिष्ठ भाजपा नेता अश्वथ नारायण ने भी सरकार की आलोचना की, इसे पक्षपातपूर्ण और तुष्टिकरण की राजनीति का उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार स्पष्ट रूप से एक समुदाय को विशेष लाभ देने की कोशिश कर रही है और सभी पर समान कानून लागू नहीं कर रही है। भाजपा नेताओं ने बेंगलुरु के फ्रीडम पार्क में विरोध प्रदर्शन किया, कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह समुदाय विशेष के पक्ष में पक्षपात कर रही है।
कर्नाटक सरकार ने केंद्रीय मंत्री वी सोमन्ना के खिलाफ तीन मामलों को वापस लेने के अनुरोध को भी खारिज कर दिया। ये मामले कावेरी जल विवाद के विरोध से जुड़े थे। भाजपा ने इस पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार न्याय का चयनात्मक रूप से इस्तेमाल कर रही है और कुछ को बचाने की कोशिश कर रही है। राज्य सरकार के इस कदम पर भाजपा का कहना है कि कांग्रेस सरकार द्वारा मामलों को वापस लेने के फैसले राजनीतिक और धार्मिक संबद्धताओं पर आधारित हैं, न कि कानूनी आधार पर।
इस मुद्दे पर कांग्रेस समर्थकों का कहना है कि सरकार ने हर मामले का विश्लेषण उसकी गंभीरता के आधार पर किया है और केवल उन्हीं मामलों को वापस लिया है जिनमें ठोस सबूत नहीं थे। सरकार का कहना है कि झूठे आरोपों या बिना ठोस सबूत वाले मामलों को वापस लेना उचित है। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी और अन्य भाजपा नेताओं ने इस फैसले पर नाराज़गी जताई है। जोशी ने हुबली दंगा मामलों का उल्लेख करते हुए सवाल उठाया कि पत्थरबाजी करने वाले क्या देशभक्त थे? दरअसल, इससे पहले भी कांग्रेस सरकार ने हुबली हिंसा 2022 में शामिल मुस्लिम आरोपियों के केस वापस ले लिए थे। उस वक़्त मुस्लिम भीड़ ने पुलिस थाने पर हमला कर दिया था और 10 से अधिक पुलिसकर्मी इस हमले में घायल हुए थे। कट्टरपंथियों की भीड़ ने थाने में तोड़फोड़ मचाई थी, पथराव किया था, यहाँ तक कि पुलिस के वाहनों में आग भी लगा दी थी। लेकिन कांग्रेस सरकार उन घायल पुलिसकर्मियों को भी न्याय नहीं दे पाई और उसने मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के चलते आरोपियों पर दर्ज केस वापस ले लिए। इस पर सवाल उठे कि, क्या ये उन आरोपियों को दूसरी बार पुलिस पर हमला करने की छूट देने वाला फैसला नहीं है ?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला कांग्रेस और AIMIM के बीच संबंधों पर भी सवाल उठाता है। कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी कई बार आरोप लगाते रहे हैं कि, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM, भाजपा की B टीम है, जो विपक्षी दलों के वोट काटने के काम करती है। 2023 में हुए तेलंगाना विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने नारा भी दिया था, 'मोदी जी के दो यार, ओवैसी और KCR।'' हालाँकि, अब कांग्रेस की ही सरकार ने हिजाब को लेकर उग्र प्रदर्शन करने वाले AIMIM नेताओं पर दर्ज मुक़दमे वापस ले लिए हैं, तो कांग्रेस से पुछा जाना चाहिए कि आखिर AIMIM किसकी B टीम है ?
इसके साथ ही, यह भी देखा गया है कि स्कूल और कॉलेजों में हिजाब के विरोध में प्रदर्शन करने वाले हिंदू छात्रों पर दर्ज मामले जारी रहेंगे। कांग्रेस सरकार का यह कदम पक्षपातपूर्ण होने का आरोप झेल रहा है, विशेष रूप से भाजपा और अन्य विपक्षी दल इसे तुष्टिकरण और असमानता का प्रमाण मान रहे हैं। इस तरह के फैसलों से सरकार की निष्पक्षता और कानूनी प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं, और यह कर्नाटक के राजनीतिक माहौल को और गरमाता दिख रहा है।
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