नई दिल्ली: 1986 के बाद पहली बार क्रूड आयल की कीमत शून्य से भी नीचे चली गई। यह अमेरिकी बेंचमार्क क्रूड वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) के दाम में इतिहास की सबसे बड़ी गिरावट है। कोरोना वायरस संकट की वजह से क्रूड आयल की मांग में कमी आई है और तेल की सभी भंडारण सुविधाएं भी अपनी पूर्ण क्षमता पर पहुंच चुकी हैं। सोमवार को बाजार में क्रूड आयल की कीमत शून्य से नीचे 37.63 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई।
हालांकि भारत की निर्भरता ब्रेंट क्रूड की आपूर्ति पर है, ना कि डब्ल्यूटीआई पर। इसलिए भारत पर अमेरिकी क्रूड के नकारात्मक होने का खास असर नहीं पड़ेगा। ब्रेंट का भाव अब भी 20 डॉलर के ऊपर बना हुआ है और यह गिरावट केवल WTI के मई वायदा में दिखाई दी, जून वायदा अब भी 20 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर है। अमेरिकी क्रूड आयल की जून डिलीवरी में 14.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, फिलहाल इसके दाम 21.32 डॉलर प्रति बैरल है।
आपको बता दें कि भारत क्रूड आयल का बड़ा आयातक है। खपत का 85 फीसदी हिस्सा भारत आयात के माध्यम से पूरा करता है। इसलिए जब भी क्रूड सस्ता होता है, तो भारत को इसका लाभ मिलता है। तेल सस्ता होने की स्थिति में इम्पोर्ट में कमी नहीं पड़ती लेकिन भारत का बैलेंस ऑफ ट्रेड कम होता है। इससे रुपये को लाभ होता है क्योंकि डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में मजबूती आती है, जिससे महंगाई भी नियंत्रण में आ जाती है। सस्ते क्रूड आयल से घरेलू बाजार में भी इसकी कीमतें कम रहेंगी।
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