बैंगलोर: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी ने जनता से पांच प्रमुख वादे किए थे, जिन्हे गारंटी का नाम दिया गया था। इन वादों को पूरा करने के लिए कांग्रेस सरकार अब कई तरह के टैक्स बढ़ा रही है, जिसका असर कर्नाटक की जनता पर पड़ने लगा है। सरकार बनने के कुछ ही दिनों बाद कांग्रेस ने नंदिनी दूध पर 3 रुपए बढ़ा दिए थे, फिर बिजली की डालें ढाई रुपए यूनिट (200 से अधिक यूनिट) से बढ़ा दी थीं। हाल ही में डीजल और पेट्रोल पर टैक्स में 3 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई थी, और शराब और बीयर पर कर बढ़ाने की योजना है, साथ ही हाउस टैक्स और इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) पर भी टैक्स लगाने की तैयारी है। इसका सीधा मतलब होगा, जनता से एक हाथ से लेना और दूसरे हाथ से उसे वापस देकर अपनी चुनावी गारंटी पूरी करने का दावा करना।
इसके अलावा, कांग्रेस सरकार ने अपनी कमाई बढ़ाने के उपाय बताने के लिए एक अमेरिकी फर्म बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (BCG) को काम पर रखा गया है, जिस पर छह महीने में राज्य को 9.5 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। कांग्रेस सरकार ने राज्य की वित्तीय स्थिति सुधारने और राजस्व बढ़ाने के लिए रणनीति बनाने के लिए BCG को काम पर रखा है। यह कदम चुनावी वादों को पूरा करने से जुड़ी उच्च लागतों के मद्देनजर उठाया गया है। BCG ने पहले ही राज्य सरकार को सुझाव देना शुरू कर दिया है।
हालाँकि, सेवानिवृत्त IAS अधिकारी एमजी देवसहायम सहित कुछ आलोचक निजी सलाहकारों को काम पर रखने के खिलाफ तर्क देते हैं। देवसहायम का मानना है कि भारत के कई अनुभवी IAS अधिकारी, जिनमें से कई की पृष्ठभूमि IIT और IIM में है, इन कार्यों को बेहतर ढंग से संभाल सकते हैं। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि मुफ्त सुविधाएं और गारंटी प्रदान करना अस्थिर है और राज्य की वित्तीय सेहत के लिए हानिकारक है। देवसहायम का ये भी कहना है कि, विदेशी सलाहकारों के पास भारतीय संसाधनों और स्थितियों को समझने का अभाव होता है, जिसके चलते वे केवल मोटी फीस लेकर खोखली रिपोर्ट बनाकर दे सकते हैं, इसके बजाए किसी भारतीय को ये काम सौंपा जा सकता था, जो हालातों से परिचित हो और योग्य हो।
उल्लेखनीय है कि, कर्नाटक सरकार की पांच गारंटियों में सभी घरों को 200 यूनिट मुफ्त बिजली (गृह ज्योति), परिवार की प्रत्येक महिला मुखिया को 2,000 रुपये प्रति माह (गृह लक्ष्मी), गरीबी रेखा से नीचे (BPL) परिवारों को 10 किलो खाद्यान्न (अन्न भाग्य), बेरोजगार स्नातकों को दो साल के लिए 3,000 रुपये प्रति माह और बेरोजगार डिप्लोमा धारकों को दो साल के लिए 1,500 रुपये प्रति माह (युवनिधि), और राज्य भर में सरकारी गैर-एसी बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा (शक्ति) शामिल हैं। इन वादों से 5.10 करोड़ लोगों को लाभ मिलने का दावा किया गया है और इनको पूरा करने से 2023-24 में राज्य पर 36,000 करोड़ रुपये का खर्च का अनुमान है। चालू वित्त वर्ष के लिए इन योजनाओं के लिए आवंटित बजट 52,009 करोड़ रुपये है।
हालांकि, 2024-25 के लिए राज्य का कुल राजस्व घाटा बजट 3,71,383 करोड़ रुपये है, जिसमें पहली बार राज्य की उधारी 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गई है। स्थिति ये है कि, राज्य का खजाना खाली हो रहा है और विकास कार्य तो दूर, चुनावी गारंटियां पूरा करने में भी सरकार को मुश्किलें हो रहीं हैं। अब अधिक कमाई उत्पन्न करने के लिए, राज्य सरकार ने ईंधन की कीमतों में वृद्धि की है, जिससे पेट्रोल 102 रुपये प्रति लीटर से अधिक हो गया है। उन्होंने संपत्ति मार्गदर्शन मूल्यों में भी 15-30% का इजाफा किया, भारतीय निर्मित शराब (IML) पर 20% अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (AED) लगाया, बीयर पर AED को 175% से बढ़ाकर 185% किया और नए पंजीकृत परिवहन वाहनों पर 3% अतिरिक्त उपकर लागू किया। 25 लाख रुपये से अधिक की लागत वाले इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) पर आजीवन टैक्स का प्रावधान किया और गैर-पंजीकरण-आवश्यक दस्तावेजों के लिए स्टांप शुल्क 200% से बढ़ाकर 500% कर दिया गया। ये तमाम चीज़ें, संपत्ति कर, जल कर और बस किराए में भविष्य में वृद्धि का भी संकेत देती हैं।
इसके अतिरिक्त, कांग्रेस सरकार बिक्री को बढ़ावा देने के लिए 1 जुलाई से प्रीमियम शराब ब्रांडों की कीमतों को कम करने की योजना बना रही है। इस रणनीति का उद्देश्य महंगी शराब और बीयर की खरीद को बढ़ावा देना है, जिससे शराब की बिक्री से राज्य की आमदनी बढ़ेगी। भाजपा ने इन राजस्व-उत्पादक उपायों की आलोचना की है, उनका तर्क है कि ये जनता पर अनुचित बोझ डालते हैं। हालांकि, आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस ने ऐसी योजनाओं का बचाव करते हुए उन्हें आवश्यक चुनावी रणनीति बताया है।
लेकिन सोचने वाली बात ये भी है कि, जब एक राज्य में चुनावी गारंटियां पूरी करने में प्रदेश सरकार का राजस्व रसातल में चला गया है, तो हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में भी जो कांग्रेस ने, करोड़ों महिलाओं को 'खटाखट' 1 लाख, बेरोज़गारों को भी सालाना 1 लाख, सभी फसलों पर MSP, हर बार किसानों के कर्जे माफ़ करने के जो वादे किए थे, उसे पार्टी कैसे पूरा करती ? क्या इसी तरह पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढाकर, टैक्स बढाकर, नंदिनी दूध, बिजली की दरें बढाकर, या फिर किसी विदेशी फर्म को हायर करके ये सब किया जाता ? फिर देश में शिक्षा, स्वास्थय, रक्षा, सड़क, जल और अन्य मुद्दों से जुड़े विकास कार्यों के लिए पैसा कहाँ से लाया जाता ? एक बार जब कांग्रेस विधायकों ने अपने क्षेत्रों में विकास कार्य के लिए राज्य सरकार से धन जारी करने के लिए कहा था, तो डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने ये कहते हुए मना कर दिया था कि चुनावी गारंटियों को पूरा करने में हमें फंड लगाना पड़ा है, इसलिए अभी विकास कार्यों के लिए पैसा नहीं बचा है।
वैसे कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा ने विरासत टैक्स लगाने का सुझाव दिया था, जिसमे व्यक्ति के मरने के बाद उसकी 55 फीसद संपत्ति सरकार ले लेती, या तो इसे लागू किया जाता। या फिर जो देशवासियों की संपत्ति की गिनती करके उसके पुनर्वितरण का वादा किया था, वो रास्ता अपनाया जाता। बहरहाल, कांग्रेस अभी केंद्र की सत्ता में नहीं है और जहाँ सत्ता में है, वहां खज़ाना खाली हो चुका है, राज्य सरकार ने चुनावी गारंटियां पूरा करने के लिए काफी कुछ बढ़ा दिया हैं, अभी और कुछ भी बढ़ सकता है, जिसकी सलाह अमेरिकी फर्म देगी। इसी साल जब राज्य में सूखा पड़ा था, तब भी राज्य सरकार के पास राहत कार्यों के लिए पैसे नहीं थे, उसने केंद्र से आर्थिक मदद मांगी। केंद्र ने उसे 3,454 करोड़ रुपये जारी किए।
हालाँकि, कांग्रेस के चुनावी वादों पर भी अर्थशास्त्रियों ने चिंता जताई थी कि मुफ्त की चीज़ों से सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ बढ़ेगा और बाकी विकास कार्यों के लिए पैसा नहीं बचेगा, लेकिन उस समय पार्टी ने इन बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया था। यही नहीं, सरकार बनने के बाद कांग्रेस ने अपनी मुफ्त की 5 चुनावी गारंटियों को पूरा करने के लिए SC/ST वेलफेयर फंड से 11 हजार करोड़ रुपये निकाल लिए थे। बता दें कि, कर्नाटक शेड्यूल कास्ट सब-प्लान और ट्रायबल सब-प्लान एक्ट के मुताबिक, राज्य सरकार को अपने कुल बजट का 24.1% SC/ST के उत्थान के लिए खर्च करना पड़ता है। लेकिन उन 34000 करोड़ में से भी 11000 करोड़ रुपए राज्य सरकार ने निकाल लिए। इसके बाद राज्य सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए एक योजना शुरू की, जिसमे उन्हें वाहन खरीदने पर 3 लाख तक की सब्सिडी देने का ऐलान किया था। उस योजना के अनुसार, यदि कोई अल्पसंख्यक 8 लाख रुपये की कार खरीदता है, तो उसे मात्र 80,000 रुपये का शुरूआती भुगतान करना होगा। 3 लाख रुपए राज्य सरकार देगी, यही नहीं बाकी पैसों के लिए भी बैंक ऋण सरकार ही दिलाएगी।
वहीं, इस साल के बजट में कांग्रेस सरकार ने वक्फ प्रॉपर्टी के लिए 100 करोड़ और ईसाई समुदाय के लिए 200 करोड़ आवंटित किए हैं, फिर मंदिरों पर 10 फीसद टैक्स लगाने का बिल लेकर आई थी, लेकिन भाजपा के विरोध के कारण वो बिल पास नहीं हो सका। जानकारों का कहना है कि, धन का सही प्रबंधन नहीं करने के कारण, राज्य सरकार का खज़ाना खाली हो गया और उसके पास विकास कार्यों और अपनी जनता को सूखे से राहत देने के लिए पैसा नहीं बचा। अब पार्टी ने एक विदेशी फर्म को कमाई बढ़ाने के लिए सलाह देने के काम पर रखा है, जो 6 महीने के 9.5 करोड़ लेगी।
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