नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि भारत के विश्वविद्यालयों को वैचारिक संघर्ष का अखाड़ा नहीं बनना चाहिए. यहां विचार- विमर्श पर काम होना चाहिए और उसके जरिए ही सिद्धांतों को आगे बढ़ना चाहिए. दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित किए गए एक सेमिनार 'स्वराज से नवभारत तक भारत के विचारों का पुनरावलोकन' पर अपने विचार रखते हुए अमित शाह ने यह बातें कहीं.
गृह मंत्री ने कहा कि हमारी स्वराज की कल्पना में स्व शब्द का काफी महत्व है. राज का मतलब व्यवस्था लाने वाला है, इसका अर्थ शासन नहीं है. स्वराज की व्याख्या करने वालों ने स्व शब्द का महत्व घटा दिया और राज को व्यापक बना दिया. स्वराज की व्याख्या केवल शासन व्यवस्था तक सीमित नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि स्वराज की व्याख्या में स्वधर्म और हमारी संस्कृति खुद-ब-खुद आ जाती है. स्वराज की व्याख्या में देश का सर्वोच्च विचार सबसे पहले आ जाता है.
अमित शाह ने कहा कि स्वराज की संपूर्ण कल्पना ही नए भारत का विचार है. अमित शाह ने कहा कि यदि हम भारत को भू-राजनैतिक देश के तौर पर देखेंगे तो इसे कभी नहीं समझ पाएंगे. भारत कोई संधि से बना देश नहीं है. भारत कोई युद्ध के नतीजे से बन हुआ देश नहीं है. भारत कोई प्रस्ताव से पारित होकर बना देश नहीं है. भारत एक भू-सांस्कृतिक देश है. जब तक हम इस बात को नहीं समझेंगे, तब तक हम भारत की संरचना को नहीं समझ सकेंगे.
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