अमित से अ-मिट तक अमिताभ
|| तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ ||
कद की लम्बाई ,आवाज़ की गहराई,चेहरे का तेज़,भावनाओं का वेग, बोलते नयन और
किरदार में समा जाने वाला जीवन अर्थात अमिताभ बच्चन …...
जन चेतना के कविकार हरिवंशराय बच्चन के कुल में 11 अक्टूबर,1942को जन्मे अमिताभ बच्चन का आरंभ में नाम इंकलाब रखा गया था जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान प्रयोग में किए गए इंकलाब जिंदाबाद से लिया गया था। लेकिन बाद में अमिताभ नाम रख दिया गया जिसका अर्थ है, "ऐसा प्रकाश जो कभी नहीं बुझेगा"
पिता के काव्यो से क्रांतिकारी ज्वाला और माता की रंगमंच से जुड़ी गहरी विचारधारा ने बाल्य अवस्था में ही बालक अमित के रक्त में कला के 9 रसो का संचार किया | दो बार एम.ए कर चुके अमिताभ ने 20 वर्ष की आयु में, अभिनय में अपना कैरियर आजमाने के लिए कोलकाता की एक शिपिंग फर्म बर्ड एंड कंपनी की नौकरी छोड़ माया नगरी मुंबई का रुख किया |
आरम्भ
साल 1969 में अपने कैरियर की शुरूआत ख्वाज़ा अहमद अब्बास के निर्देशन में बनी सात हिंदुस्तानी से की. अब इसे विधाता का चमत्कार कह लिजिये या अमिताभ का भाग्य कि फिल्म तो फ्लॉप रही मगर अमिताभ को अपनी पहली फ़िल्म के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार में बेस्ट न्यूकमर के अवार्ड से नवाज़ा गया, लेकिन ये भी सच है कि यही से शुरू हुई धर्मेन्द्र,शशि कपूर, राजेश खन्ना जैसे स्थापित सितारों के बीच,रुपहले पर्दे पर अपनी पहचान बनाने की चुनोतिपूर्ण यात्रा |
जिसमे सफलता कम और विफलता ज्यादा थी. परवाना, रेशमा और शेरा ,गहरी चाल जैसी फ्लॉप फिल्मे अमिताभ के सफ़र पर जैसे पूर्णविराम लगा रही थी, परन्तु संघर्ष के इस लम्बे अग्निपथ पर उनकी मदद की भारतीय सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता महमूद ने, जिन्होंने अमिताभ को आसरा दिया और फिर सफलता-विफलता के द्वन्द में आया साल 1973, जिसने तोड़ी अमिताभ के विफलता की ज़ंजीर | प्रकाश मेहरा निर्देशित ज़ंजीर ने अमिताभ को सिर्फ सफलता ही नही बल्कि जाया भादुड़ी के रूप में जीवन संगिनी भी दी |
अमिताभ लाज़वाब
संघर्ष के अग्निपथ से आरम्भ हुई यात्रा अब हिंदुस्तान के लाखो-करोड़ो दिलो तक पहुच चुकी थी और फिर आया भारतीय सिनेमा के इतिहास में सुनहरे हर्फो से लिखा 15 अगस्त 1975 का दिन, जब शोले पर्दे पर उतरी जहा वीरू-जय की जोड़ी अमर हो गई और अमिताभ, अमिताभ से एंग्री यंगमेन बन गये इसके बाद तो डॉन,त्रिशूल,कभी-कभी,अमर अकबर एंथोनी,सिलसिला,शहंशाह, हम जैसी फिल्मो ने ना केवल भारत बल्कि विदेशो में भी अमिताभ को लोकप्रिय बना दिया |
बेमिसाल अंदाज़
डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नही नामुमकिन है…..,आज मेरे पास बंगला है गाडी है,बैंक बैलेंस है,क्या है तुम्हारे पास……., मर्द को दर्द नही होता…., हम जहा खड़े हो जाते है लाइन भी वही से शुरू होती है …..
ये वो खास अंदाज़ है जो आज भी हर बच्चे,बूढ़े और जवान की जुबान पर रहता है| दिवार फिल्म में भगवान से संवाद करना,शोले में सिक्का उछालना,ये अमित जी के अभिनय के वो रंग है जिसने उन्हें चित्रपट पर अमिट कर दिया है |
नायक भी-गायक भी
अमिताभ बच्चन की सबसे बड़ी ताकत उनकी आवाज़ है. जो दिल को छू लेने वाले संवादों के साथ सुरों में भी ढल जाती है|
रंग बरसे भीगे चुनरवाली रंग बरसे….., होली खेले रघुवीर अवध में…..
ये अमिताभ के गाये वो गीत हैं जिसके बिना होली का त्यौहार अधूरा है.
इतना ही नही डॉन का एक्शन हो या चुपके-चुपके की कोमेडी, बागबान का घायल पिता हो या सिलसिला का नाकाम प्रेमी हो, अभिमान का अहंकारी पति हो या पा का बीमार बच्चा ओरो,हर किरदार को वास्तविक बनाने की जो कला अमिताभ के पास है वो शायद दुनिया में किसी और अभिनेता के पास नही है, इसीलिए अमिताभ बच्चन को सदी के महानायक के ख़िताब से नवाज़ा गया है.
राजनीति के विजय
फिल्मो के मशहूर विजय याने अमिताभ 1984 में राजीव गांधी की सपोर्ट में राजनीति में कूद पड़े। उन्होंने इलाहाबाद लोक सभा सीट से उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एच.एन. बहुगुणा को आम चुनाव में 68.2 % के मार्जिन से हरा कर ऐतिहासिक विजय हासिल की. हालांकि तीन साल बाद इन्होंने अपनी राजनीतिक अवधि को पूरा किए बिना त्याग दिया। इस त्यागपत्र के पीछे इनके भाई का बोफोर्स विवाद में नाम आना था, जिसके लिए इन्हें अदालत में जाना पड़ा। इस मामले में बच्चन को दोषी नहीं पाया गया।
करोड़ों दिलो पर राज करने वाले करोड़पति
नमस्कार देवियों और सज्जनों में अमिताभ बच्चन कौन बनेगा करोड़पति में आपका हार्दिक स्वागत करता हु.
ये वो अल्फाज़ है जो आजकल हर रात 9 बजे हिंदुस्तान के हर शहर, हर क़स्बे, हर गाँव, हर घर में सुनाई देता है सोनी चैनल पर शुरू हुए कौन बनेगा करोड़पति शो ने टीवी चैनल पर सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और इसकी कामयाबी का सारा श्रेय जाता है अमिताभ बच्चन को, हमेशा रुपहले पर्दे पर एक्शन-इमोशन को जीने वाले शहंशाह को पहली बार टीवी पर एंकर के रूप में देखकर दुनिया उनकी और ज्यादा दीवानी हो गई. आज हर प्रतियोगी अमिताभ से मिलकर इतना भावुक हो जाते है कि जैसे उन्हें भगवान के दर्शन हो गये.
ख़िताब
वैसे तो दुनिया में ऐसा कोई ख़िताब नही जिससे अमिताभ बच्चन के अद्भुत अभिनय को उनके सहज व्यक्तित्व को नवाज़ा जा सके परन्तु भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया है। अमिताभ बच्चन को अब तक चार बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। इनमें फ़िल्म "पा" में उनके अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला है। अमिताभ बच्चन ने यह पुरस्कार तीसरी बार जीता है। इससे पहले उनको यह पुरस्कार फ़िल्म "अग्निपथ" और "ब्लैक" के लिए मिल चुका है। इसके अलावा वह 'सात हिन्दुस्तानी' के लिए सर्वश्रेष्ठ नवोदित कलाकार का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। साथ ही सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, सह-अभिनेता ,सदी के सबसे बड़े सितारे, जैसे अनेक सम्मान उनके हाथो में आकर खुद को सम्मानित महसूस करते होंगे.
चिर युवा
पराधीन भारत से लेकर मोदी काल तक 75 वर्ष की आयु में लगभग 150 फिल्मे, अनगिनत विज्ञापन,पोलियो,धुम्रपान निषेध,गुजरात पर्यटन, मतदान जागरूकता अभियान जैसे समाज कल्याण के कार्यो के साथ, ये सात हिन्दुस्तानियों का हिन्दुस्तानी आज भी बिना रुके, बिना थके बॉलीवुड के सरकार बनकर दर्शको को मनोरंजन के ख़जाने से करोड़पति बना रहे है. शायद ये चाहने वालो की दुआ और उपरवाले का करम है जो अमिताभ बच्चन को बुजुर्ग नही होने देता है.
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