मौत को पहले ही भांप चुके थे इरफ़ान, रुला देगी आपको उनकी यह मार्मिक चिट्ठी

मौत को पहले ही भांप चुके थे इरफ़ान, रुला देगी आपको उनकी यह मार्मिक चिट्ठी
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'किसी ने कह दिया तो क्या 'तुम नहीं हो इस दुनिया में', ए फ़रिश्ते हमारी तो हर दुआ में केवल तुम हो'

अपनी नायाब अदाकारी से करोड़ों दिलों की धड़कन बन बैठे इरफ़ान खान ने अब दुनिया को अलविदा कह दिया है. इंडस्ट्री में एक बेहतरीन सफर तय करने वाले इरफ़ान इतनी जल्दी दुनिया को अलविदा कह देंगे इस बारे में किसी ने भी नहीं सोचा था लेकिन हाँ, इरफ़ान को पता था कि उनकी मौत आने वाली है वह समझ गए थे कि अब वह किसी चीज का हिस्सा नहीं है. एक समय ऐसा भी था जब इरफ़ान को लगा कि दर्द खुदा से बड़ा होता है. जैसे ही इरफ़ान को अपनी बीमारी के बारे में पता चला वह समझ गए थे कि अब उनके पास अधिक दिन नहीं हैं लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. उनके हौसले इतने बुलंद थे कि उन्होंने इस जंग को लड़ना जरुरी समझा और आखिरी दम तक उन्होंने लड़ाई की. 

'दुर्लभ कैंसर से लड़कर जीत नहीं पाए तो क्या हुआ, करोड़ों दिलों को तो जीत ले गए ना तुम.' 

जिस समय इरफ़ान को अपनी बीमारी का पता चला उन्होंने इलाज शुरू करवाया. साल 2018 में जब ब्रिटेन में उनका इलाज चल रहा था तो उन्होंने एक भावपूर्ण चिट्ठी लिखी थी जो इतनी अधिक मार्मिक है कि पढ़ने वाले हर इंसान की आँखों को भीगा देगी. यह चिट्ठी उन्होंने फिल्म समीक्षक और पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज के साथ साझा की थी जो मूल रूप से न्यूज़लॉन्ड्री पर प्रकाशित हुई थी.  


वह चिट्ठी कुछ इस प्रकार थी - इरफ़ान ने लिखा था, "इस कायनात की करनी में मेरा विश्वास ही पूर्ण सत्य बन गया. उसके बाद लगा कि वह विश्वास मेरे हर सेल में पैठ गया. वक़्त ही बताएगा कि वह ठहरता है कि नहीं… फ़िलहाल मैं यही महसूस कर रहा हूं." कुछ महीने पहले अचानक मुझे पता चला था कि मैं न्यूरोएन्डोक्रिन कैंसर से ग्रस्त हूं, मैंने पहली बार यह शब्द सुना था. खोजने पर मैंने पाया कि मेरे इस शब्द पर बहुत ज्यादा शोध नहीं हुए हैं, क्योंकि यह एक दुर्लभ शारीरिक अवस्था का नाम है और इस वजह से इसके उपचार की अनिश्चितता ज्यादा है. अभी तक अपने सफ़र में मैं तेज़-मंद गति से चलता चला जा रहा था… मेरे साथ मेरी योजनाएं, आकांक्षाएं, सपने और मंजिलें थीं. मैं इनमें लीन बढ़ा जा रहा था कि अचानक टीसी ने पीठ पर टैप किया, ‘आप का स्टेशन आ रहा है, प्लीज उतर जाएं.’ मेरी समझ में नहीं आया. ना ना मेरा स्टेशन अभी नहीं आया है.’ … जवाब मिला ‘अगले किसी भी स्टाप पर उतरना होगा. आपका गन्तव्य आ गया’ अचानक एहसास हुआ कि आप किसी ढक्कन (कॉर्क) की तरह अनजान सागर में अप्रत्याशित लहरों पर बह रहे हैं…लहरों को क़ाबू करने की ग़लतफ़हमी लिए. इस हड़बोंग, सहम और डर में घबरा कर मैं अपने बेटे से कहता हूं- आज की इस हालत में मैं केवल इतना ही चाहता हूं. मैं इस मानसिक स्थिति को हड़बड़ाहट, डर, बदहवासी की हालत में नहीं जीना चाहता. मुझे किसी भी सूरत में मेरे पैर चाहिए, जिन पर खड़ा होकर अपनी हालत को तटस्थ हो कर जी पाऊं. मैं खड़ा होना चाहता हूं.

ऐसी मेरी मंशा थी, मेरा इरादा था…

कुछ हफ़्तों के बाद मैं एक अस्पताल में भर्ती हो गया. बेइंतहा दर्द हो रहा है. यह तो मालूम था कि दर्द होगा, लेकिन ऐसा दर्द… अब दर्द की तीव्रता समझ में आ रही है…कुछ भी काम नहीं कर रहा है. ना कोई सांत्वना और ना कोई दिलासा. पूरी कायनात उस दर्द के पल में सिमट आई थी… दर्द खुदा से भी बड़ा और विशाल महसूस हुआ.

मैं जिस अस्पताल में भर्ती हूं, उसमें बालकनी भी है…बाहर का नज़ारा दिखता है. कोमा वार्ड ठीक मेरे ऊपर है. सड़क की एक तरफ मेरा अस्पताल है और दूसरी तरफ लॉर्ड्स स्टेडियम है. वहां विवियन रिचर्ड्स का मुस्कुराता पोस्टर है. मेरे बचपन के ख्वाबों का मक्का, उसे देखने पर पहली नज़र में मुझे कोई एहसास ही नहीं हुआ… मानो वह दुनिया कभी मेरी थी ही नहीं.


मैं दर्द की गिरफ्त में हूं. 

और फिर एक दिन यह अहसास हुआ… जैसे मैं किसी ऐसी चीज का हिस्सा नहीं हूं जो निश्चित होने का दावा करे… ना अस्पताल और ना स्टेडियम. मेरे अंदर जो शेष था वह वास्तव में कायनात की असीम शक्ति और बुद्धि का प्रभाव था… मेरे अस्पताल का वहां होना था. मन ने कहा…केवल अनिश्चितता ही निश्चित है. इस अहसास ने मुझे समर्पण और भरोसे के लिए तैयार किया… अब चाहे जो भी नतीजा हो, यह चाहे जहां ले जाये, आज से आठ महीनों के बाद या आज से चार महीनों के बाद… या फिर दो साल… चिंता दरकिनार हुई और फिर विलीन होने लगी और फिर मेरे दिमाग से जीने- मरने का हिसाब निकल गया.


पहली बार मुझे शब्द ‘आज़ादी’ का एहसास हुआ सही अर्थ में! एक उपलब्धि का अहसास. इस कायनात की करनी में मेरा विश्वास ही पूर्ण सत्य बन गया. उसके बाद लगा कि वह विश्वास मेरे हर सेल में पैठ गया. वक़्त ही बताएगा कि वह ठहरता है कि नहीं… फ़िलहाल मैं यही महसूस कर रहा हूं. इस सफ़र में सारी दुनिया के लोग… सभी मेरे सेहतमंद होने की दुआ कर रहे हैं. प्रार्थना कर रहे हैं. मैं जिन्हें जानता हूं और जिन्हें नहीं जानता वे सभी अलग-अलग जगहों और टाइम ज़ोन से मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं. मुझे लगता है कि उनकी प्रार्थनाएं मिल कर एक हो गयी हैं, एक बड़ी शक्ति…तीव्र जीवन धारा बन कर मेरे स्पाइन से मुझ में प्रवेश कर सिर के ऊपर कपाल से अंकुरित हो रही हैं. अंकुरित होकर यह कभी कली, कभी पत्ती, कभी टहनी और कभी शाखा बन जाती है… मैं खुश होकर इन्हें देखता हूं. लोगों की सामूहिक प्रार्थना से उपजी हर टहनी, हर पत्ती, हर फूल मुझे एक नई दुनिया दिखाती हैं. अहसास होता है कि ज़रूरी नहीं कि लहरों पर ढक्कन(कॉर्क) का नियंत्रण हो. जैसे आप क़ुदरत के पालने में झूल रहे हों!


इस चिट्ठी को पढ़कर यह अहसास होता है कि इरफ़ान ने अपनी जिंदगी के उन सभी पहलुओं को जी लिया था जिन्हे वह जीना चाहते थे और उन्हें पता था कि उनकी मौत जल्द होनी है. उन्हें नतीजे की परवाह नहीं थी बल्कि उन्होंने अपनी सभी चिंताओं को हटाते हुए जीने-मरने का हिसाब अपने दिमाग से निकाल दिया था, वह हर पल को खुशमिजाजी के साथ जी रहे थे. उन्होंने जाते-जाते पूरी दुनिया में आंसुओं का सैलाब ला दिया. उनकी अहमियत क्या है यह हर व्यक्ति के आँखों का आंसू आज बयां कर रहा है.

'ए बन्दे मौत तो सबको आनी है लेकिन जिसके लिए रोये पूरा जमाना वो अहमियत तुमको बनानी है'

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