66.27% मुस्लिम आबादी वाला इलाका! पहली बार के नेता युसूफ पठान ने 5 बार के सांसद अधीर रंजन को दी मात
66.27% मुस्लिम आबादी वाला इलाका! पहली बार के नेता युसूफ पठान ने 5 बार के सांसद अधीर रंजन को दी मात
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कोलकाता: NDA के नेतृत्व वाला गठबंधन लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के लिए तैयार है। NDA को 293 सीटें मिलीं, जबकि विपक्षी INDIA गठबंधन को कुल 232 सीटें मिलीं। नतीजों के बाद राजनीतिक दिग्गजों के गढ़ बहुत मजबूती से टूट गए हैं। ओडिशा विधानसभा के नतीजों में भाजपा, नवीन पटनायक (BJD) को हराकर पहली बार ओडिशा में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के लिए तैयार है। यही स्थिति पश्चिम बंगाल के बेहरामपुर निर्वाचन क्षेत्र में भी हुई, जहां तृणमूल कांग्रेस (TMC) के उम्मीदवार यूसुफ पठान ने कांग्रेस के उम्मीदवार और मौजूदा सांसद अधीर रंजन चौधरी को 85,022 मतों के बहुमत से हराया और पहली बार संसद के सदस्य बने। 

बता बड़े कि अधीर रंजन 1999 से बेहरामपुर निर्वाचन क्षेत्र से सांसद हैं, यानी करीब पच्चीस साल से। भारतीय चुनाव आयोग के अनुसार, TMC के यूसुफ को 524516 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के अधीर को 439494 वोट मिले। भाजपा उम्मीदवार डॉ. निर्मल कुमार साहा 371885 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे। चुनाव जीतने के बाद यूसुफ ने मीडिया से कहा, 'मैं आप सभी को बधाई देता हूं जो मेरे साथ रहे हैं। मैं खुश हूं। यह सिर्फ मेरी जीत नहीं है, बल्कि सभी कार्यकर्ताओं की जीत है। रिकॉर्ड टूटने के लिए बनते हैं। मैं अधीर रंजन का सम्मान करता हूं। मैं ऐसा करता रहूंगा। मैं सबसे पहले एक स्पोर्ट्स अकादमी बनाऊंगा, ताकि बच्चे अपना करियर बना सकें। मैं उद्योगों के लिए भी काम करूंगा। मैं यहां रहूंगा और लोगों के लिए काम करूंगा। मैं गुजरात में भी रहूंगा क्योंकि मेरा परिवार वहीं है। मुझे बहरामपुर में एक नया परिवार मिला है। मैंने दीदी (ममता बनर्जी) से बात की। वे खुश हैं।'

बता दें कि, ​​बेहरामपुर सीट मुर्शिदाबाद जिले के अंदर आती है, जहाँ मुस्लिम आबादी 66.27 फीसद है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि नए नए राजनीति में उतरे युसूफ पठान के लिए यह क्यों आसान था। यूसुफ़ बेहरामपुर से नहीं आते, पश्चिम बंगाल से भी नहीं। वे गुजरात से हैं और उनका पूरा परिवार वहीं रहता है, लेकिन लगता है बेहरामपुर के मतदाताओं को उनके बाहरी होने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। क्योंकि, अक्सर TMC सुप्रीमो ममता बनर्जी ही पीएम मोदी और अमित शाह को गुजराती कहकर उन्हें बाहरी बताती रही है, वहीं उन्होंने ही गुजरात से एक गैर-राजनेता को लाकर बंगाल से सांसद बना दिया। ये सवाल वोटर पर भी उठ रहे हैं कि, उनके लिए सिर्फ़ यही मायने रखता है कि उम्मीदवार का धर्म क्या है ? अगर वह उसी धर्म का है तो वे उसे वोट देने में खुश हैं ? क्योंकि, ऐसा ही कुछ 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला था, जहाँ मुस्लिम बहुल सीटों पर ऑल इंडिया मजलिस-ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के 5 विधायकों ने राज्य की स्थानीय पार्टी JDU, RJD और राष्ट्रीय पार्टी भाजपा-कांग्रेस को मात देते हुए जीत दर्ज की थी। अब हैदराबाद से आने वाले AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार में ऐसा विकास का कौन सा वादा कर दिया था, जो उनके 5 विधायक एक तरफा जीते ? क्या ये केवल मजहब के नाम पर वोट देने का ट्रेंड नहीं ? 

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