रमज़ान-ए-पाक का आगाज़ हो गया है, सभी मोमिन भाई अपने परवर-दिगारे-आलम के हुक्म के अनुसार पवित्र माह रमज़ान में रोज़े और इबादत पर ध्यान लगा रहे हैं, साथ ही क़ुरान में दिए गए आदेश के मुताबिक अपने साथी मोमिन भाइयों का भी ध्यान रख रहे हैं. खुद को खुदा की राह में समर्पित कर देने का प्रतीक पाक महीना माह-ए-रमजान न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश का महीना है, बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इफ्तार का समय हर मोमिन के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों हैं ? नहीं, तो हम आपको बताते हैं.
क़ुरान के अनुसार एक बार मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह तआला से पूछा की मैं जितना आपके करीब रहता हूँ, आप से बात कर सकता हूँ उतना और भी कोई करीब है ? अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि ऐ मूसा आखरी वक़्त में एक उम्मत आएगी वह उम्मत मुहम्मद (सल्ललाहु अलैहिवसल्लम)की उम्मत होगी उस उम्मत को एक महीना ऐसा मिलेगा जिसमे वह सूखे होंठ, प्यासी जुबान, सुखी आँखे , भूखे पेट,इफ्तार करने बैठेंगे, तब मैं उनके बहुत करीब रहूँगा. मूसा हमारे और तुम्हारे बीच में 70 पर्दो का फ़ासिला है लेकिन अफ्तार के वक़्त उस उम्मती और मेरे बीच में एक परदे का भी फासला नहीं होगा और इस दौरान वो जो दुआ मागेंगे उनकी दुआ क़बूल करना मेरी जिम्मेदारी है.
यही कारण है कि अमीर हो या गरीब, शेख हो या खान , शिया हो या सुन्नी, पुरुष हो या स्त्री, हर मुसलमान, अल्लाह को अपने करीब महसूस करने के लिए पुरे एहतिराम के साथ दिन भर भूखे प्यासे रहते हैं, ताकि जब वे शाम को इबादत करने के बाद मुहम्मद के आदेशानुसार अफ्तार करने बैठें तो अल्लाह को अपने सबसे क़रीब पाएं.
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