एक ऐसा IAS अफसर जिसको भुगतना पड़ा ईमानदारी का खामियाजा, 33 सालों में 58 बार हुआ 'ट्रांसफर'

एक ऐसा IAS अफसर जिसको भुगतना पड़ा ईमानदारी का खामियाजा, 33 सालों में 58 बार हुआ 'ट्रांसफर'
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आज हम आपको एक ऐसे IAS अधिकारी के बारे में बताएंगे, जिनका पिछले 33 सालों में 58 बार ट्रांसफर हुआ। भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाई गई उनकी आवाज़ ने उन्हें सत्ता के दबाव और शोषण के खिलाफ खड़ा किया तथा यही कारण था कि उनका ट्रांसफर लगातार होता रहा। हालांकि, हाल ही में उनका फिर से ट्रांसफर हुआ, जिसमें उन्हें हरियाणा राज्य के परिवहन विभाग का अतिरिक्त मुख्य सचिव (ACS) नियुक्त किया गया। हालांकि, यह नियुक्ति 30 अप्रैल, 2025 को उनके रिटायरमेंट से ठीक 5 महीने पहले हुई है, किन्तु इस नियुक्ति से उनके संघर्ष और असहमति की यात्रा में एक नया अध्याय जुड़ गया है।

अशोक खेमका का नाम अब देशभर में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के प्रतीक के रूप में मशहूर हो गया है। उन्होंने अपने पूरे करियर में बार-बार सत्ता के दबाव एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष किया, और न केवल खुद के लिए, बल्कि समाज के लिए भी संघर्ष किया। उनकी कहानी एक ऐसे अधिकारी की है जिसने सच बोलने और सरकारी तंत्र में सुधार लाने का प्रयास किया, भले ही इसके लिए उन्हें व्यक्तिगत रूप से कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

कौन हैं अशोक खेमका?
अशोक खेमका का जन्म कोलकाता में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई आईआईटी खड़गपुर से की तथा इसके बाद टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च से आगे की शिक्षा प्राप्त की। उनके व्यक्तित्व में जो खास बात थी, वह थी उनका ईमानदारी और दृढ़ नायकत्व। 1991 बैच के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका को उनके निरंतर ट्रांसफर के कारण 'ट्रांसफरमैन' के नाम से जाना जाता है। उन्हें हर 6 महीने में एक नई जगह पर तैनात किया गया, और उनका 33 सालों में 58 बार ट्रांसफर हुआ। इस तरह, उन्होंने अपनी सरकारी सेवा में एक असामान्य और चुनौतीपूर्ण यात्रा तय की।

भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाई आवाज
अशोक खेमका तब ख़बरों में आए, जब उन्होंने हरियाणा में रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ के बीच एक जमीन सौदे में अनियमितताएं पाई। इस सौदे में कथित तौर पर कई भ्रष्टाचार के तत्व थे, जिसे लेकर खेमका ने एक कड़ा कदम उठाया तथा सौदे को रद्द करने का आदेश दिया। यह कदम न केवल भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके संघर्ष को प्रदर्शित करता है, बल्कि यह भी बताता है कि उन्होंने किसी भी दबाव के सामने झुकने का नाम नहीं लिया। उनका यह कदम सत्ताधारी दल और बड़े कारोबारी घरानों के विरोध का कारण बना तथा इसके बाद उनका लगातार ट्रांसफर होता रहा। अशोक खेमका का यह कदम कई कारणों से ऐतिहासिक था, क्योंकि यह दिखाता है कि एक अधिकारी सत्ता और प्रभावी लोगों के खिलाफ सच बोलने में कितनी कठिनाइयाँ झेल सकता है। तत्पश्चात, उन्हें ना केवल कार्यस्थल पर बल्कि निजी जीवन में भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

सत्ता के दबाव का सामना 
अशोक खेमका को अपनी ईमानदारी की वजह से कई मुश्किल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी निरंतर लड़ाई ने उन्हें कई शक्तिशाली लोगों का विरोधी बना दिया। एक बार उन्हें सरकारी गाड़ी तक छीन ली गई, किन्तु उन्होंने इस मुश्किल समय में भी अपनी आंतरिक ताकत को बनाए रखा। उन्होंने पैदल ही अपने दफ्तर जाना जारी रखा और अपने कार्यों में कोई कमी नहीं आने दी। उनकी यात्रा यह बताती है कि किस प्रकार भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा होना एक अकेला संघर्ष बन सकता है। सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार और कुप्रथाओं के खिलाफ अपनी लड़ाई में अशोक खेमका कई बार अकेले रहे, किन्तु उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखा।

अशोक खेमका पर लिखी गई किताब
अशोक खेमका के संघर्ष और कार्यों पर आधारित एक किताब भी लिखी गई है, जिसका नाम है "जस्ट ट्रांसफर्ड... दी अनटोल्ड स्टोरी ऑफ अशोक खेमका"। यह किताब उनके जीवन के महत्वपूर्ण घटनाओं एवं उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष पर प्रकाश डालती है। किताब के जरिए अशोक खेमका ने अपने अनुभवों को साझा किया है, जो उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं, जो सरकारी सेवा में ईमानदारी से काम करने का निर्णय लेते हैं।

अशोक खेमका की कहानी हमें यह सिखाती है कि समाज में परिवर्तन लाने के लिए व्यक्ति को अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना होता है, चाहे परिस्थितियाँ जैसी भी हों। उनके संघर्ष ने यह साबित कर दिया कि सिस्टम को सुधारने के लिए दृढ़ता और साहस की आवश्यकता होती है। भले ही उन्हें कई बार व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ा, किन्तु उन्होंने कभी अपने उद्देश्य से समझौता नहीं किया। उनकी यह कहानी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है, जो समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए काम करना चाहते हैं।

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