भगवान शिव से जुड़ी ऐसी कई अनमोल वस्तुएं हैं जिनके बारे में आपके सुना तो होगा परन्तु उनके महत्व के बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे। शिव को 'त्रिलोचन' कहते हैं यानी उनकी तीन आंखें हैं। प्रत्येक मनुष्य की भौहों के बीच तीसरा नेत्र रहता है। वही शिव का तीसरा नेत्र हमेशा जागृत रहता है, लेकिन बंद। इसके अलावा यदि आप अपनी आंखें बंद करेंगे तो आपको भी इस नेत्र का अहसास हो सकता है । तीसरी आंख का मतलब है कि बोध या अनुभव का एक दूसरा आयाम खुल गया है। इसके अलावा दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं जो कि भीतर की ओर देख सकता है। वही इस बोध से आप जीवन को बिल्कुल अलग ढंग से देख सकते हैं। वही इसके बाद दुनिया में जितनी चीजों का अनुभव किया जा सकता है, वही उनका अनुभव हो सकता है इसलिए बनी बनाई चीजों पर चलने से पहले खुद समझें-सोचें। इसके अलावा शिव का यह नेत्र आधा खुला और आधा बंद है। वही यह इसी बात का प्रतीक है कि व्यक्ति ध्यान-साधना या संन्यास में रहकर भी संसार की जिम्मेदारियों को निभा सकता है।
पीयूष ग्रंथि (पीनिअल ग्लैंड) - आध्यात्मिक दृष्टि से कुंडलिनी जागरण में एक चक्र को भेदने के बाद जब षट्चक्र पूर्ण हो जाता है तो इसके बाद आत्मा का तीसरा नेत्र मलशून्य हो जाता है। वह स्वच्छ और प्रसन्न हो जाता है।शिव अपनी देह पर हस्ति चर्म और व्याघ्र चर्म को धारण करते हैं। वही हस्ती अर्थात हाथी और व्याघ्र अर्थात शेर। हस्ती अभिमान का और व्याघ्र हिंसा का प्रतीक है इसके अलावा अत: शिवजी ने अहंकार और हिंसा दोनों को दबा रखा है। मृगछाला इस पर बैठकर साधना का प्रभाव बढ़ता है। वही मन की अस्थिरता दूर होती है। तपस्वी और साधना करने वाले साधक आज भी मृगासन या मृगछाला के आसन को ही अपनी साधना के लिए श्रेष्ठ मानते हैं।
शिव का पिनाक धनुष - शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। वही ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो। यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली था। इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था। उल्लेखनीय है कि राजा दक्ष के यज्ञ में यज्ञ का भाग शिव को नहीं देने के कारण भगवान शंकर बहुत क्रोधित हो गए थे और उन्होंने सभी देवताओं को अपने पिनाक धनुष से नष्ट करने की ठानी। एक टंकार से धरती का वातावरण भयानक हो गया। इसके अलावा बड़ी मुश्किल से उनका क्रोध शांत किया गया, तब उन्होंने यह धनुष देवताओं को दे दिया। वही राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवराज थे। देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवराज को धनुष दे दिया। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था। इस धनुष को भगवान शंकर ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था। उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था लेकिन भगवान राम ने इसे उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और इसे एक झटके में तोड़ दिया।
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