लखनऊ: उत्तर प्रदेश के झाँसी में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और उत्तर प्रदेश एंटी टेररिस्ट स्क्वाड (UPATS) की टीम को एक मौलवी से पूछताछ करने और उसे हिरासत में लेने के दौरान भारी विरोध का सामना करना पड़ा। गुरुवार (12 दिसंबर 2024) को यह घटना तब हुई जब NIA की टीम ने विदेशी फंडिंग के मामले में संदिग्ध मौलवी खालिद नदवी को हिरासत में लेने की कोशिश की। खालिद नदवी झाँसी के शहर काजी का भतीजा है और विदेशी नंबरों पर बार-बार संपर्क करने और इस्लामी तालीम के नाम पर फंडिंग लेने के आरोपों का सामना कर रहा है।
NIA की टीम सुबह सुपर कॉलोनी इलाके में पहुँची और मौलवी खालिद के घर का दरवाजा खटखटाया। आधे घंटे की मशक्कत के बाद दरवाजा खुला, जिसके बाद टीम ने मौलवी से इस्लामी साहित्य, उसके वित्तीय लेनदेन और विदेशी नंबरों पर कॉल करने के संबंध में सवाल पूछे। मौलवी ने इसे ऑनलाइन पढ़ाई और धार्मिक शिक्षण से जोड़ा। जब टीम मौलवी को अपने साथ ले जाने लगी, तो नजदीकी मस्जिद से ऐलान कर दिया गया। कुछ ही समय में सैकड़ों लोग, जिनमें बुर्का पहनी महिलाएँ भी शामिल थीं, मौके पर इकट्ठा हो गए। इन लोगों ने NIA टीम को घेर लिया और उनसे धक्का-मुक्की शुरू कर दी। प्रदर्शनकारी यह दबाव बनाने लगे कि मौलवी से यहीं पूछताछ की जाए और उसे हिरासत में न लिया जाए।
स्थिति इतनी बिगड़ गई कि NIA और UPATS की टीम को मौलवी को अस्थायी रूप से छोड़ना पड़ा। स्थानीय पुलिस बड़ी संख्या में मौके पर पहुँची, लेकिन मुस्लिमों ने पुलिस का भी विरोध किया। कई घंटे के इस ड्रामे के बाद पुलिस ने मौलवी को मस्जिद के पिछले दरवाजे से बाहर निकाला और सुरक्षित हिरासत में लिया। NIA की जाँच में सामने आया कि मौलवी खालिद नदवी ऑनलाइन इस्लामी शिक्षा देता है और उसके छात्र विदेशी नागरिक भी हैं। विदेशी फंडिंग और आतंकी संगठनों से संभावित कनेक्शन की जाँच के लिए उसे हिरासत में लिया गया।
इस घटना ने देश के सामने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मस्जिद से ऐलान के बाद इकट्ठा हुई भीड़ ने जिस तरह से सुरक्षा बलों को घेर लिया और एक संदिग्ध को छुड़ाने का प्रयास किया, वह केवल कानून-व्यवस्था के लिए खतरा नहीं है, बल्कि लोकतंत्र के लिए भी एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले कश्मीर में भी ऐसे दृश्य देखने को मिल चुके हैं, जहाँ आतंकी संदिग्धों को पकड़ने गई सेना पर पत्थरबाजी होती थी। वहाँ के नाबालिग बच्चे तक इस मजहबी जहर से भर दिए गए थे। आज झाँसी में जो हुआ, वह कश्मीर में देखे गए भीड़तंत्र का ही दूसरा रूप है।
यह चिंतन का विषय है कि इस तरह की मजहबी कट्टरता कौन फैला रहा है, जहाँ देश के सुरक्षा बलों के सामने भीड़ खड़ी हो जाती है, न केवल संदिग्धों को बचाने के लिए बल्कि देश के कानून को चुनौती देने के लिए। इस तरह की घटनाएँ केवल आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को कमजोर नहीं करतीं, बल्कि देश की सुरक्षा और अखंडता पर भी प्रश्नचिह्न लगाती हैं। सवाल उठता है कि अगर आज यह भीड़ सुरक्षा बलों को घेरकर एक संदिग्ध को छुड़ा सकती है, तो कल को यह किसी आतंकी को बचाने के लिए क्या कर सकती है?
यह घटना इस ओर इशारा करती है कि मजहबी कट्टरता को बढ़ावा देने वाले तत्वों की पहचान करना और उनके द्वारा फैलाए जा रहे जहर को समाप्त करना बेहद जरूरी है। यदि समय रहते इस पर काबू नहीं पाया गया, तो यह देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। देश लोकतंत्र से चलेगा या भीड़तंत्र से? यह सवाल अब और अधिक प्रासंगिक हो गया है। कानून का राज बनाए रखने के लिए जरूरी है कि इस तरह की घटनाओं पर सख्त कार्रवाई हो और कट्टरता फैलाने वालों पर लगाम कसी जाए।