नई दिल्ली: विधानसभा चुनाव में सत्ता की राह आसान करने के लिए राजनीतिक पार्टियां साम-दाम-दंड-भेद की तमाम नीतियां अपना रही हैं. इस माहौल में हजरत निजामुद्दीन दरगाह के नजदीक का शिव मंदिर गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल बन गया है. इस मंदिर के सामने ही नागरिकता संसोधित कानून (सीएए) के खिलाफ महिलाएं 26 जनवरी से धरने पर बैठी हैं. प्रदर्शन स्थल पर नमाज पढ़ने के लिए मंदिर के पुजारी महिलाओं और बाकी लोगों को वजू (हाथ-पैर धोने) के लिए गर्म पानी मुहैया करा रहे हैं. उनकी बुजुर्ग मां लक्ष्मी देवी सिर पर हाथ फेरकर मुस्लिम महिलाओं का इस्तकबाल करती हैं. महिलाएं भी उनका और पुजारी बाबा का शुक्रिया अदा करते नहीं थकतीं.
वहीं यह भी कह अजा रहा है कि पुजारी राजाराम की मां लक्ष्मी देवी ने बताया कि सन् 1982 में बस्ती हजरत निजामुद्दीन में इस शिव मंदिर की स्थापना हुई थी. यह दरगाह से चंद कदम की दूरी पर ही है. इस मंदिर में हिंदुओं के अलावा मुस्लिम भी आते हैं. जानकारी ले किये हम आपको बता दें कि लक्ष्मी देवी कहती हैं कि बस्ती के लोगों से उन्हें हमेशा प्यार मिला है. मंदिर के पट 24 घंटे उनके लिए खुले हैं. उनका कहना है कि बस्ती के सभी लोग उनके बच्चे हैं. भेदभाव करके क्या होगा? सब कुछ यहीं रह जाना है. प्रदर्शन स्थल के वॉलंटियर शेख जिलानी बताते हैं कि मंदिर के पुजारी राजाराम का बेटा किशन और वह बचपन के दोस्त हैं. दोनों साथ स्कूल में पढ़े. दोनों एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल होते हैं. यहां तक कि कभी-कभी दोनों एक-दूसरे के घर खाना भी खाते हैं.
रामफल कहते हैं कि 1982 के बाद देश में इतने बड़े पैमाने पर बलवे हुए, लेकिन मुस्लिम बस्ती में अकेला मंदिर होने का उन्हें कभी अहसास तक नहीं हुआ. कभी कुछ हुआ तो बस्ती के लोग खुद मंदिर में आकर साथ देने की बात करते हैं. बस्ती के बुजुर्ग रहीस अहमद का कहना है कि भेदभाव तो बस राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए होता है. हम सब हिन्दुस्तानी हैं. सब इसी मिट्टी में पैदा हुए और सबको इसी मिट्टी में मिल जाना है. हम भेदभाव करेंगे तो खुदा को क्या मुंह दिखाएंगे.
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