बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि नक्षत्रराज चंद्रमा के मार्ग में पड़ने वाले विशेष तारों के समूह को नक्षत्र कहते है और इनकी संख्या कुल 27 होती है. ऐसे में आकाशमंडल में आर्द्रा छठा नक्षत्र है और यह मुख्यत: राहु ग्रह का नक्षत्र है, जो मिथुन राशि में आता है. इसी के साथ भगवान शिव शंकर के रुद्र रूप ही आर्द्रा नक्षत्र के अधिपति हैं, जो प्रजापालक हैं, परन्तु जब उग्र होते हैं तो कुछ न कुछ विनाशकारी अथवा प्रलयंकारी घटनाएं अवश्य होती हैं. कहते हैं आर्द्रा नक्षत्र के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं और इसके चारों चरणों पर मिथुन का स्पष्ट प्रभाव रहता है।
इसी के साथ सूर्य जब आर्द्रा नक्षत्र पर होता है, तब पृथ्वी रजस्वला होती है और इसी पुनीत काल में कामाख्या तीर्थ में अंबुवाची पर्व का आयोजन करते हैं और यह नक्षत्र उत्तर दिशा का स्वामी है. आप सभी को बता दें कि आर्द्रा के प्रथम चरण व चौथे चरण का स्वामी गुरु, तो द्वितीय व तृतीय चरण का स्वामी शनि को माना जाता है और भारत में आमतौर पर जून माह के तृतीय सप्ताह में आर्द्रा नक्षत्र का उदय हो जाता है. इसी के साथ सामान्य तौर पर 21 जून को सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करते हैं और आर्द्रा को कृषक कार्य करने वाले लोगों का सहयोगी माना जाता है. कहा जाता है आर्द्रा का सामान्य अर्थ नमी होता है, जो धरती पर जीवन के लिए जरूरी है और आकाश में मणि के समान दिखाई देने वाला यह होता है.
बात करें वामन पुराण की तो उसके अनुसार, नक्षत्र पुरुष भगवान विष्णु के केशों में आर्द्रा नक्षत्र का निवास है और महाभारत के शांतिपर्व के अनुसार, जगत् को तपाने वाले सूर्य और अग्नि व चंद्रमा की जो किरणें प्रकाशित होती हैं, सब जगतनियंता के 'केश' हैं. वहीं आर्द्रा नक्षत्र को जीवनदायी कहा जाता है और इसी नक्षत्र के पुण्य योग में सम्पूर्ण उत्तर भारत के राज्यों में खीर और आम खाने की परम्परा है. आप सभी को बता दें कि इस बार 22 जून को सूर्य आद्रा नक्षत्र में प्रवेश करने वाले हैं.
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