तुम्हारे आने भर से...
कुछ अपनों कुछ सपनों के मुस्काने भर से हैं
कितने सारे प्रश्न तुम्हारे आने भर से हैं
तुम आयीं तो होंठों ने खुशियों का गाल छुआ
तुम आयीं तो बातों ही बातों में हुई दुआ
तुम आयीं तो बारिश के पानी में गंध उठी
तुम आयीं तो कलियों का फूलों में बदल हुआ
तुम आयीं तो लगता है जैसे की मन के भय
मिलने की उत्सुकता में खो जाने भर से हैं
कितने सारे प्रश्न तुम्हारे आने भर से हैं
अपने पीछे दोहराने को यादें और करो
कुछ पल को आये हो मुझ से बातें और करो
आंखें गीली हो आयी हैं इन्द्रदेव सुन लो
अब के सावन में तुम भी बरसातें और करो
तुम बेहतर कर आयी हो अपने सारे मौसम
हम अपनी ऋतुओं को ये समझाने भर से हैं
कितने सारे प्रश्न तुम्हारे आने भर से हैं
ऐसे पानी के भीतर आंखों का रूप दिखा
तुम से मिलकर जैसे कोई खोया चांद मिला
जैसे उठकर गीतों के सब राजकुमार कहें
मन की पीड़ा पर अब के एक अच्छा गीत लिखा
हम ने भी पूछा है हम से तुम भी तो पूछो
इतने खुश क्या पीड़ाओं को पाने भर से हैं
कितने सारे प्रश्न तुम्हारे आने भर से हैं.